नमस्कार, आज मै आपके साथ एक बेहद ही महत्वपूर्ण जानकरी शेयर करने जा रहा हूँ| आज मै आपके साथ ईसा मसीह का जीवन परिचय शेयर करूंगा और हम सब जानेंगे की ईसा मसीह कौन थे तो इस लेख को अंत पक पूरा पढ़े.
ईसा मसीह की जीवनी बेहद ही प्रेरणादायक है| केवल ईसाई धर्म के लोगों को ही नहीं बल्कि सभी प्रकार के धर्म के लोगों को ईसा मसीह का जीवन परिचय जानना चाहिए.
ईसा मसीह हमारी तरह ही एक आम इंसान थे, ईसा मसीह ईसाई धर्म के थे| ईसाई धर्म के प्रवर्तक थे| ईसा मसीह को नासरत का यीशु भी कहा जाता है| ईसाई लोगों के भगवान है ईसा मशीह| ईसा मशीह का जन्मदिन प्रत्येक वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है.
ईसाई लोग ही नहीं अन्य सभी धर्म के लोग इस त्यौहार को मनाते है| ईसाई धर्म के लोग ईसा मशीह को परमपिता परमेश्वर का पुत्र और ईसाई त्रिएक का तृतीय सदस्य मानते हैं.
ईसा मसीह की जीवनी और उपदेश बाइबिल के नये नियम (ख़ास तौर पर चार शुभ सन्देशों: मत्ती, लूका, युहन्ना, मर्कुस पौलुस का पत्रिया, पत्रस का चिट्ठियां, याकूब की चिट्ठियां, दुनिया के अंत में होने वाले चीजों का विवरण देने वाली प्रकाशित वाक्य) में दिये गये हैं.
यीशु मसीह को इस्लाम में ईसा कहा जाता है, और उन्हें इस्लाम के भी महानतम पैग़म्बरों में से एक माना जाता है| ईसा मसीह इस्लामी परम्परा में भी एक महत्वपूर्ण पैग़म्बर माना गया है, तथा क़ुरान में उनका जिक्र भी हुआ है.
लगभग 1992 वर्ष पहले 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म हुआ था|
ईसा मशीह का सम्पूर्ण जीवन परिचय बाइबल में दिया गया है| जैसे अन्य सभी धर्मों में “पवित्र गीता, पाक कुरान” हैं उसी तरह ईसाई धर्म में “बाइबल” है.
बाइबिल में ऐसा कहा गया है की ईसा मसीह की माता मरियम गलीलिया प्रांत के नाजरेथ गाँव की रहने वाली थी| ईसा मसीह की माता की सगाई दाऊद के राजवंशी यूसुफ नामक बढ़ई से हुई थी.
ईसा मसीह की माता विवाह से पहले ही कुँवारी रहते हुए ही ईश्वरीय आशीर्वाद से गर्भवती हो गई| ईश्वर की और से संकेत पाकर यूसुफ ने उन्हें पत्नी स्वरूप ग्रहण किया|
विवाह होने के बाद यूसुफ गलीलिया छोड़कर यहूदिया प्रांत के बेथलेहेम नामक नगरी में जाकर रहने लगे, वहाँ वे रात्रि को एक अस्तबल में ठहरे हुए थे वहीं पर अर्द्धरात्रि में यीशु का जन्म हुआ| उनका नाम क्राइस्ट था| ईसा मसीह का जन्म हुआ। शिशु को दुष्ट राजा हेरोद के अत्याचार से बचाने के लिए यूसुफ मिस्र भाग गए.
राजा हेरोद का 4 ई.पू. में निधन अत: ईसा का जन्म संभवत: 4 ई.पू. में हुआ था| राजा हेरोद के मरने के बाद यूसुफ लौटकर नाज़रेथ गाँव में बस गए.
ईसा मसीह जब बारह वर्ष के हुए, तब तो यरुशलम में तीन दिन रुककर मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उन की सुनते और उन से प्रश्न करते हुए पाया।
लूका 2:47 और जिन्होंने उन को सुना वे सब उनकी समझ और उनके उत्तरों से चकित थे। तब ईसा अपने माता पिता के साथ अपने गांव वापिस लौट गए.
ईसा मसीह ने यूसुफ का पेशा सीख लिया और लगभग 30 साल की उम्र तक उसी गाँव में रहकर वे बढ़ई का काम करते रहे|
बाइबिल (इंजील) में उनके 13 से 29 वर्षों के बीच का कोई जिक्र नहीं मिलता| 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से पानी में डुबकी (दीक्षा) ली। डुबकी के बाद ईसा पर पवित्र आत्मा आया। 40 दिन के उपवास के बाद ईसा लोगों को शिक्षा देने लगे.
ये बात बहुत सालों पहले की है जब हेरोदेस राजा के समय में जब यहूदियों के बैतलहम में यीशु का जन्म हुआ, ईसा मसीह के जन्म के पहले से ही कई ज्योतिषी, साधू यरूशलेम में आकर पूछने लगे थे कि यहूदियों का राजा जिस का जन्म हुआ है, कहां है ?
राजा के लोगों के पूछने पर ज्योतिषियों ने बताया कि हम ने पूर्व में ही उनके भविष्य का तारा देखा है और उन्हे प्रणाम करने आए हैं.
ये वाक्य सुनकर हेरोदेस राजा और उसके साथ सारा यरूशलेम पूरी तरह चौक गए, घबरा गया और हेरोदेस का राजा घबराहट में उस ने लोगों के सब महायाजकों और शास्त्रियों को इकट्ठा करके उन से पूछा, कि मसीह का जन्म कहाँ होना चाहिए ?
उन्होंने उस से कहा, यहूदिया के बैतलहम में; क्योंकि भविष्यद्वक्ता के द्वारा यह लिखा है कि हे बैतलहम, जो यहूदा के देश में है, तू किसी रीति से यहूदा के अधिकारियों में सब से छोटा नहीं; क्योंकि तुझ में से एक अधिपति निकलेगा, जो मेरी प्रजा इस्राएल की रखवाली करेगा.
ये सब जानने के बाद हेरोदेस ने ज्योतिषियों को चुपके से बुलाकर उन से पूछा, कि तारा ठीक किस समय दिखाई दिया था और उस ने यह कहकर उन्हें बैतलहम भेजा, कि जाकर उस नए शिशु की सच्ची जानकारी ले कर आओ और जब वह मिल जाए तो मुझे समाचार दो ताकि मैं भी आकर उस को प्रणाम करूं (हेरोदेस के राजा की चाल थी).
वे राजा की बात सुनकर चले गए और देखा, जो तारा उन्होंने पूर्व में देखा था, वह उन के आगे आगे चला और जंहा बालक था, उस जगह के ऊपर पंहुचकर ठहर गया॥
उस तारे को देखकर सभी ज्योतिषि और अन्य साथी लोग अति आनन्दित हुए और उस घर में पहुंचकर उस बालक को उस की माता मरियम के साथ देखा और मुंह के बल गिरकर उसे प्रणाम किया; और अपना अपना यैला (थैला) खोलकर उसे सोना और लोहबान और गन्धरस की भेंट चढ़ाई|
सभी ज्योतिषियों को रात के समय स्वप्न में यह चेतावनी मिली की हेरोदेस राजा सभी ज्योतिषियों को जान से मार देगा और हेरोदेस का राजा तुम्हें मरने के लिए इसी और बड़ रहा है जिसकी वजह से वे दूसरे मार्ग से होकर अपने देश को चले गए॥
उन के चले जाने के बाद देखो, प्रभु के एक दूत ने स्वप्न में यूसुफ को दिखाई देकर कहा, उठ; उस बालक को और उस की माता को लेकर मिस्र देश को भाग जा; और जब तक मैं तुझ से न कहूं, तब तक वहीं रहना; क्योंकि हेरोदेस इस बालक को ढूंढ़ने पर है कि उसे मरवा डाले।
वह रात ही को उठकर बालक और उस की माता को लेकर मिस्र को चल दिया। और हेरोदेस के मरने तक वहीं रहा; इसलिये कि वह वचन जो प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था कि मैंने अपने पुत्र को मिस्र से बुलाया पूरा हो.
जब हेरोदेस ने यह देखा, कि ज्योतिषियों ने मेरे साथ ठट्ठा किया है, तब वह क्रोध से भर गया; और लोगों को भेजकर ज्योतिषियों से ठीक ठीक पूछे हुए समय के अनुसार बैतलहम और उसके आस पास के सब लड़कों को जो दो वर्ष के, वा उस से छोटे थे, मरवा डाला|
तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हुआ, कि रामाह में एक करूण-नाद सुनाई दिया, रोना और बड़ा विलाप, राहेल अपने बालकों के लिये रो रही थी और शान्त होना न चाहती थी, क्योंकि वे हैं नहीं॥
हेरोदेस के मरने के बाद देखो, प्रभु के दूत ने मिस्र में यूसुफ को स्वप्न में दिखाई देकर कहा| कि उठ, बालक और उस की माता को लेकर इस्राएल के देश में चला जा क्योंकिं जो बालक के प्राण लेना चाहते थे, वे मर गए.
वह उठा और बालक और उस की माता को साथ लेकर इस्राएल के देश में आया| परन्तु यह सुनकर कि अरिखलाउस अपने पिता हेरोदेस की जगह यहूदिया पर राज्य कर रहा है, वहां जाने से डरा; और स्वप्न में चेतावनी पाकर गलील देश में चला गया और नासरत नाम नगर में जा बसा ताकि वह वचन पूरा हो, जो भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा गया था, कि वह नासरी कहलाएगा.
बालक बढ़ता गया और बड़ा हो कर बल से बुद्धि से सम्पूर्ण हुआ जैसा की भगवान की कृपा थी उस पर|
ईसा मसीह के माता-पिता प्रति वर्ष फसह के पर्व में यरूशलेम में जाया करते थे। ईसा मसीह जब बारह वर्ष के हुए, तो वे पर्व की रीति के अनुसार यरूशलेम को गए|
ईसा मसीह के माता पिता जब उन दिनों को पूरा करके लौटने लगे, तो वह लड़का यीशु यरूशलेम में ही रह गया और यह उसके माता-पिता नहीं जानते थे.
वे यह समझकर, कि वह और यात्रियों के साथ होगा, एक दिन का पड़ाव निकल गए और उसे अपने कुटुम्बियों और जान-पहचानों में ढूंढ़ने लगे| पर जब नहीं मिला, तो ढूंढ़ते-ढूंढ़ते यरूशलेम को फिर लौट गए और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उन की सुनते और उन से प्रश्न करते हुए पाया और जितने भी लोग उस की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरों से चकित थे.
तब वे उसे देखकर चकित हुए और उस की माता ने उस से कहा; हे पुत्र, तू ने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया ? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूंढ़ते थे।
उस ने उन से कहा; तुम मुझे क्यों ढूंढ़ते थे ? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है ? परन्तु जो बात उस ने उन से कही, उन्होंने उसे नहीं समझा तब वह उन के साथ गया और नासरत में आया और उन के वश में रहा और उस की माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया.
ये बात उन दिनों की है जब परमेश्वर ने छठवें महीने में जिब्राइल फरिश्ते को गलील के नासरत नगर में एक कुंवारी के पास भेजा गया| जिस की मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरूष से हुई थी| उस कुंवारी लड़की का नाम मरियम था.
स्वर्ग के दूत ने मरियम के पास आकर कहा की “हे युवति आप बहुत भाग्यशाली हैं आप पर भगवान की नजर पड़ी है खुशी विजय आपके पास है और आप पर ईश्वर का अनुग्रह हुआ है, प्रभु तेरे साथ है|”
मरियम ये बातें सुनकर अचम्बे में पढ़ गयी और और सोचने लगी कि यह किस प्रकार का अभिवादन है ?
भगवान के फ़रिश्ते ने उस स्त्री से कहा की तुम चिंतित न हो भगवान की तुम पर असीम कृपा हुई है जिसकी वजह से तुम एक ऐसे पुत्र को जन्म दोगी जो आगे चलकर भगवान के करी करेगा| तुम उनका नाम यीशु रखना.
यीशु महान होगा और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा और उसके राज्य का अन्त न होगा.
मरियम ने फरिश्ते से कहा, यह क्यों कर होगा ? मैं तो पुरूष को जानती ही नहीं। फरिश्ते ने उस को उत्तर दिया; कि पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा और परमप्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र आत्मा जो उत्पन्न होने वाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा.
बाइबिल जैसे पवित्र किताब में ईसा मसीह के चमत्कारों का वर्णन किया गया है| ईसा मसीह के कुछ ऐसे चमत्कार हुए है जिनका इस पुस्तक (बाईबल) में वर्णन नहीं किया गया है। परन्तु ये इसलिये लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ.
ईसा मसीह ने अपने जीवन काल में बहुत चमत्कार किए है जिनका वर्णन करना बहुत खुशी की बात है|
यह बहुत अच्छे इंसान थे जिसके सिर पर हाथ पड़ जाये तो वह धन्य हो जाता था| ईसा मसीह ने अपने जीवन में अनगिनत चमत्कार किये जो पृथ्वी पर किसी और के लिए नामुमकिन थे.
यीशु के शिष्य : यीशु के कुल बारह शिष्य थे|
ईसा मसीह जब तीस साल के थे तभी से उन्होने इजराइल की जनता को यहूदी धर्म का एक नया रूप प्रचारित करना शुरु कर दिया| उस समय तीस साल से कम उम्र वाले को सभागृह में शास्त्र पढ़ने के लिए और उपदेश देने के लिए नही दिया करते थे|
उन्होंने कहा कि ईश्वर (जो केवल एक ही है) साक्षात प्रेमरूप है और उस वक़्त के वर्त्तमान यहूदी धर्म की पशुबलि और कर्मकाण्ड नहीं चाहता|
यहूदी ईश्वर की परमप्रिय नस्ल नहीं है, ईश्वर सभी मुल्कों को प्यार करता है| इंसान को क्रोध में बदला नहीं लेना चाहिए और क्षमा करना सीखना चाहिए|
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वे ही ईश्वर के पुत्र हैं, वे ही मसीह हैं और स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग हैं| यहूदी धर्म में क़यामत के दिन का कोई ख़ास ज़िक्र या महत्त्व नहीं था, पर ईसा ने क़यामत के दिन पर ख़ास ज़ोर दिया – क्योंकि उसी वक़्त स्वर्ग या नर्क इंसानी आत्मा को मिलेगा| ईसा ने कई चमत्कार भी किए.
कुछ लोग हमेशा से ही होते जो सच्चाई के रास्ते में कांटे बने हुए होते हैं ठीक उसी प्रकार से यहूदियों के कट्टरपन्थी रब्बियों (धर्मगुरुओं) ने ईसा का भारी विरोध किया| उन्हें ईसा में मसीहा जैसा कुछ ख़ास नहीं लगा.
धर्म गुरु हमेशा से ही अपने रास्ते में आने वालों को खत्म करना पसंद करते थे| धर्मगुरुओं को अपने कर्मकाण्डों से प्रेम था| ख़ुद को ईश्वरपुत्र बताना उनके लिये भारी पाप था.
ईसा मसीह को नियमानुसार मरने के लिए उन्होंने उस वक़्त के रोमन गवर्नर पिलातुस को इसकी शिकायत कर दी। रोमनों को हमेशा यहूदी क्रान्ति का डर रहता था। इसलिये कट्टरपन्थियों को प्रसन्न करने के लिए पिलातुस ने ईसा को क्रूस (सलीब) पर मौत की दर्दनाक सज़ा सुनाई.
बाइबल के मुताबिक़, रोमी सैनिकों ने ईसा को कोड़ों से भी मारा था। उन्हें शाही कपड़े पहनाए, उनके सर पर कांटों का ताज सजाया और उनपर थूका और ऐसे उन्हें तौहीन में “यहूदियों का बादशाह” बनाया|
पीठ पर अपना ही क्रूस उठवाके, रोमियों ने उन्हें गल्गता तक लिया, जहां पर उन्हें क्रूस पर लटकाना था। गल्गता पहुंचने पर, उन्हें मदिरा और पित्त का मिश्रण पेश किया गया था| उस युग में यह मिश्रण मृत्युदंड की अत्यंत दर्द को कम करने के लिए दिया जाता था|
ईसा ने इसे इंकार किया| बाइबल के मुताबिक़, ईसा दो चोर के बीच क्रूस पर लटकाया गया था.
ईसाइयों का मानना है कि क्रूस पर मरते समय ईसा मसीह ने सभी इंसानों के पाप स्वयं पर ले लिए थे और इसलिए जो भी ईसा में विश्वास करेगा, उसे ही स्वर्ग मिलेगा|
मृत्यु के तीन दिन बाद ईसा वापिस जी उठे और 40 दिन बाद सीधे स्वर्ग चले गए| ईसा के 12 शिष्यों ने उनके नये धर्म को सभी जगह फैलाया यही धर्म ईसाई धर्म कहलाया|
तो दोस्तों मै उम्मीद करता हूँ की आपको ईसा मसीह कौन थे पढ़ने में काफी आनंद आया होगा| अगर आपको ईसा मसीह का जीवन परिचय पढ़ने में अच्छा लगा हो तो कृपया जरूर बताएं|
ईसा मसीह की सम्पूर्ण जानकारी हमें विकिपीडिया के जरिये मिली है इसलिए विकिपीडिया का पूरे दिल से धन्यवाद और आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा फैलाएँ व्हाट्सएप्प, फेसबुक आदि के माध्यम से इस लेख को अपने लोगों तक पहुंचा सकते हैं| “धन्यवाद”
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