Advertisement
श्री गुरु तेग बहादुर जी का इतिहास

श्री गुरु तेग बहादुर जी का इतिहास और सम्पूर्ण जीवन परिचय

श्री गुरु तेग बहादुर जी का जीवन परिचय : सबसे पहले तो दोस्तों श्री गुरु तेग बहादुर जी के बारे में जानेंगे की वे कौन थे श्री गुरु तेग बहादुर जी ने क्या क्या किया अपने जीवन के सफर में ? गुरु तेग बहादुर इतने क्यों प्रसिद्ध थे की उन्हे सीख धर्म में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था.

गुरु तेग बहादुर की जीवनी कम शब्दों में

श्री गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 01 अप्रैल, सन् 1621 में हुआ था| गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नवें गुरु थे| गुरु तेग बहादुर जी ने ही प्रथम गुरु “गुरु नानक” द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण करते रहे.

श्री गुरु तेग बहादुर जी के द्वारा रचित 115 पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं| गुरु तेग बहादुर जी ने जी ने ही कश्मीरी पण्डितों और अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने से घोर विरोध किया था.

इस्लाम स्वीकार न करने के कारण सन् 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हे इस्लाम कबूल करने को कहा पर गुरु साहब ने कहा “शीश कटा सकते है केश नहीं”.

उसी समय औरंगजेब ने गुरुजी का सभी हिन्दू मुस्लिम सीख ईसाई के सामने सिर कटवा दिया था| गुरु द्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया.

विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग़ बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है.

इस महावाक्य के अनुसार गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था.

गुरु तेग बहादुर जी के इस बलिदान से काफी लोगों में बदलाव की ज्वाला उठ चुकी थी| गुरु जी के लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था| इसलिए गुरु जी ने अपने धर्म की रक्षा करने के लिए कभी भी किसी के आगे सर नहीं झुकाया था.

अपने सीख धर्म की लाज रखते हुए उन्होने सर कटवा लिया लेकिन इस्लाम नहीं कबूला.

आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध श्री गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी|

Grammarly Writing Support

यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था| गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे.

11 नवंबर, 1675 ई को दिल्ली के चांदनी चौक में काज़ी ने फ़तवा पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने तलवार करके गुरू साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया। किन्तु गुरु तेग बहादुर ने अपने मुंह से सी तक नहीं कहा.

आपके अद्वितीय बलिदान के बारे में गुरु गोविन्द सिंह जी ने ‘बिचित्र नाटक में लिखा है-

तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥
साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥
धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥

जरुर पढ़े : सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह की जीवनी

श्री गुरु तेग बहादुर जी हिस्ट्री हिंदी में

Guru Teg Bahadur History in Hindi Language

गुरु तेग बहादुर का प्रारम्भिक जीवन : श्री गुरू तेग बहादुर जी का जन्म 01 अप्रैल, सन् 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ| गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नवें गुरु तथा गुरु हरगोविंद जी के पांचवें पुत्र भी थे.

आठवें गुरु हरगोविंद जी के पोते “हरीकृष्ण राय” जी की बेवक्त मृत्यु हो गयी थी जिसकी वजह से गुरु तेग बहादुर जी को नवां गुरु बनाया गया.

श्री गुरु तेग बहादुर जी ने आनंदपुर साहिब का निर्माण कराया था और ये उसी जगह रहने भी लगे| गुरु तेग बहादुर जी के बचपन का नाम त्यागमल था|

गुरु तेग बहादुर जी बचपन से ही वीर थे उन्होने केवल 14 वर्ष की आयु में ही अपने पिता का साथ दिया और मुगलों को धूल चटाई थी.

गुरु तेग बहादुर जी का नाम तेग बहादुर क्यों पढ़ा ?

गुरु तेग बहादुर जी का नाम तेग बहादुर क्यों पढ़ा ?

गुरु तेग बहादुर जी की इस वीरता को देखते हुए उनके पिता जी ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर (तलवार के धनी) रखा.

Guru Teg Bahadur History in Hindi Language

श्री गुरु तेग बहादुर जी को रक्तपात से नफरत थी रणभूमि में हुए रक्तपात को देख कर उनके मन को ठेस पहुंची और वो अपने मन की शांति के लिए अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए आद्यत्मिक ज्ञान की तरफ बढ गए.

श्री गुरु तेग बहादुर जी ने सब छोड़ दिया और एकांत में चले गए जहां उन्होने लगातार 20 वर्षों तक “बाबा बकाला” नामक स्थान पर साधना पूरी की|

आठवें गुरु हरकिशन जी ने अपने उत्तराधिकारी का नाम “बाबा बकाले” का निर्देश दिया|

गुरु तेग बहादुर जी ने सीख धर्म के प्रचार के लिए कई स्थानों का भ्रमण किया| आनंदपुर साहब से किरतपुर, रोपण, सैफाबाद होते हुए वे खिआला (खदल) जा पहुंचे|

यहाँ उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुँचे| कुरुक्षेत्र से यमुना के किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुँचे और यहीं पर उन्होंने साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया.

गुरु तेग बहादुर जी धर्म प्रचार हेतु एक जगह से दूसरी जगह गए| उसी तरह गुरु तेग बहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहाँ उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए.

गुरु जी ने आध्यात्मिकता, धर्म, सच्चाई का ज्ञान बाँटा| रूढ़ियों, अंधविश्वासों की आलोचना कर नये आदर्श स्थापित किए|

गुरु जी ने परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएँ बनवाना आदि कार्य भी किए|

इन्हीं यात्राओं में सन् 1666 में गुरुजी के यहाँ पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ| जो दसवें गुरु- “गुरु गोविंद सिंह जी” बने| गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु माने जाते हैं.

श्री गुरु तेग बहादुर जी और औरंगजेब के समय की कहानी

ये बात औरंगज़ेब के शासन काल की बात है| औरंगज़ेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर रोज़ “भगवद गीता” के श्लोक पढ़ता था और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था.

फिर क्या हुआ की एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगज़ेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया|

लेकिन पंडित अपने बेटे को ये बताना भूल गया कि उसे गीता में से किन श्लोकों का अर्थ राजा के सामने व्यक्त नहीं करना था|

पंडित के बेटे ने जाकर औरंगज़ेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया| गीता का पूरा अर्थ सुनकर औरंगज़ेब को यह ज्ञान हो गया कि प्रत्येक धर्म अपने आपमें महान है किन्तु औरंगजेब की हठधर्मिता थी कि वह अपने के धर्म के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी.

औरंगजेब के जुल्म से त्रस्त कश्मीरी पंडित एवम सभी हिन्दू गुरु तेगबहादुर जी के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार इस्लाम स्वीकार करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है, यातनाएं दी जा रही हैं| मारा पिटा जा रहा है.

गुरु चिंतातुर हो समाधान पर विचार कर रहे थे तो उनके नौ वर्षीय पुत्र बाला प्रीतम (गोविन्द सिंह) ने उनकी चिंता का कारण पूछा, पिता ने उनको सभी परेशानियों के बारे में बताया और कहा की सभी लोगों को औरंगजेब के जुल्म से बचाने के लिए मुझे प्राणघातक अत्याचार सहते हुए प्राणों का बलिदान करना होगा.

गुरु जी जैसे वीर पिता की वीर संतान के मुख पर कोई भय नहीं था| गोविंद जी ने जरा सा भी दुख नहीं दिखाया की मेरे पिता को अपना जीवन गंवाना होगा.

उपस्थित लोगों द्वारा उनको बताने पर कि आपके पिता के बलिदान से आप अनाथ हो जाएंगे और आपकी मां विधवा तो बाल प्रीतम ने उत्तर दियाः

“यदि मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों बच्चे यतीम होने से बच सकते हैं या अकेले मेरी माता के विधवा होने जाने से लाखों माताएँ विधवा होने से बच सकती है तो मुझे यह स्वीकार है।”

छोटे से बालक का ऐसा वाक्य सुनकर सब आश्चर्य चकित रह गए| उसके बाद श्री गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों से भी हिंदुओं से कहा कि आप सभी जाकर औरंगज़ेब से कह दें कि यदि गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे.

इस बीच यदि आप गुरु तेग बहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाएंगे तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे|

इस बात को सुनने के बाद औरंगजेब को गुस्सा आया उसे लगा की बेइज्जती हो गयी है और उसने गुरु जी को बन्दी बनाए जाने के लिए आदेश दे दिए.

गुरु तेगबहादुर जी ने औरंगजेब के अत्याचार को सहा और उससे कहा कि यदि तुम जबरदस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा बिलकुल भी नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके उसपे अपना इस्लाम धर्म थोपा जाएगा मुस्लिम बनाया जाएगा.

गुरु तेग बहादुर जी की ये सभी बातें सुन कर औरंगजेब को गुस्सा आ गया और उसने आगबबूला हो कर दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेगबहादुर का शीश काटने का हुक्म दिया और गुरु तेगबहादुर ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया.

गुरुद्वारा शीश गंज की कहानी – Shri Guru Teg Bahadur Ji Biography in Hindi

Guru Teg Bahadur History in Hindi Language

आगबबूला हो कर दिल्ली के चांदनी चौक पर श्री गुरु तेग बहादुर जी का शीश काटने का हुक्म दिया और गुरु तेगबहादुर ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया.

गुरु तेग बहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा शीश गंज साहिब है.

गुरु तेगबहादुर जी की बहुत सारी रचनाएं गुरु ग्रंथ साहिब के महला 9 में संग्रहित हैं।।

गुरुद्वारे के निकट लाल किला, फिरोज शाह कोटला और जामा मस्जिद भी अन्‍य आकर्षण हैं| गुरु तेगबहादुर जी की शहीदी के बाद उनके बेटे गुरु गोबिन्द राय को गुरु गद्दी पर बिठाया गया| जो सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द सिंह जी बने.

श्री कीरतपुर साहिब जी पहुँचकर भाई जैता जी से स्वयँ गोबिन्द राय जी ने अपने पिता श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का शीश प्राप्त किया और भाई जैता जो रँगरेटा कबीले के साथ सम्बन्धित थे| उनको अपने आलिंगन में लिया और वरदान दिया ‘‘रँगरेटा गुरु का बेटा’’.

विचार हुआ कि गुरुदेव जी के शीश का अन्तिम सँस्कार कहां किया जाए| दादी माँ व माता गुजरी ने परामर्श दिया की श्री आनंदपुर साहिब जी की नगरी गुरुदेव जी ने स्वयँ बसाई हैं अतः उनके शीश की अँत्येष्टि वही की जाए.

इस पर शीश को पालकी में आंनदपुर साहिब लाया गया और वहाँ शीश का भव्य स्वागत किया गया सभी ने गुरुदेव के पार्थिक शीश को श्रद्धा सुमन अर्पित किए तद्पश्चात विधिवत् दाह सँस्कार किया गया.

कुछ दिनों के बाद भाई गुरुदिता जी भी गुरुदेव का अन्तिम हुक्मनामा लेकर आंनदपुर साहिब पहुँच गये| हुक्मनामे में गुरुदेव जी का वही आदेश था जो कि उन्होंने आंनदपुर साहिब से चलते समय घोषणा की थी कि उनके पश्चात गुरु नानक देव जी के दसवें उत्तराधिकारी गोबिन्द राय होंगे.

ठीक उसी इच्छा अनुसार गुरु गद्दी की सभी औपचारिकताएं सम्पन्न कर दी जाएँ|

उस हुक्मनामे पर परिवार के सभी सदस्यों और अन्य प्रमुख सिक्खों ने शीश झुकाया और निश्चय किया कि आने वाली बैसाखी को एक विशेष समारोह का अयोजन करके गोबिन्द राय जी को गुरूगद्दी सौंपने की विधिवत् घोषणा करते हुए सभी धर्मिक पारम्परिक रीतियाँ पूर्ण कर दी जाएँगी.

श्री गुरु तेग बहादुर जी ने  सहनशीलता, कोमलता और सौम्यता की मिसाल के साथ साथ हमेशा यही संदेश दिया कि किसी भी इंसान को न तो डराना चाहिए और न ही डराना चाहिए|

इसी की मिसाल दी श्री गुरू तेग बहादुर जी ने बलिदान देकर| जिसके कारण उन्हें हिन्द की चादर या भारत की ढाल भी कहा जाता है उन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी.

श्री गुरू तेग बहादुर जी को अगर अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरूष कह लिया जाए तो कहना जरा भी गलत न होगा पूरा गुरू चमत्कार या करमातें नहीं दिखाता|

वो उस अकालपुरख की रजा में रहता है और अपने सेवकों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है.

श्री गुरू तेग बहादुर जी ने धर्म की खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया| ऐसा कोई संत परमेश्वर ही कर सकता है जिसने अपने हृदय में परमात्मा को पा लिया उसके भेद को तो कोई बिरला ही समझ सकता है|

आज जरूरत गुरू घर से जुड़ने की इसलिए तो गुरबाणी में कही गई बातों को अमली जामा पहनाने की बातें लिखी गयी है.

संसार को ऐसे बलिदानियों से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने जान तो दे दी, परंतु सत्य का त्याग नहीं किया|

नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी भी ऐसे ही बलिदानी थे| गुरु जी ने स्वयं के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के अधिकारों एवं विश्वासों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया|

अपनी आस्था के लिए बलिदान देने वालों के उदाहरणों से तो इतिहास भरा हुआ है, परंतु किसी दूसरे की आस्था की रक्षा के लिए बलिदान देने की एक मात्र मिसाल है-नवम पातशाह की शहादत.

श्री गुरु तेग बहादुर जी ने ही प्रथम गुरु “गुरु नानक” द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण करते रहे|

आप सभी को कैसी लगी ये सच्ची बातें उम्मीद करता हूँ की आपको हम सभी के श्री गुरु तेग बहादुर जी पर गर्व महसूस हुआ होगा|

आज उनकी वजह से हम अपने धर्म के अनुसार जी रहे है| आज उनकी वजह से ही हम अपने सिर को उठा के चल रहे है| उनकी इस कुर्बानी को कभी नहीं भूलना है|

जितना हो सके इस लेख को शेयर कीजिये कोई| अन्य कहानी हो तो जरूर बताइये मै आपको उसकी पूरी जानकारी दूंगा|

इस लेख को आप फेसबुक, व्हाट्सएप्प, ट्विटर आदि पर शेयर कर सकते हैं. धन्यवाद..!

Similar Posts

One Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *