शीर्षक: विद्योत्तमा कालिदास की कहानी – Kalidas Story in Hindi Language.
घर के आगे से पशुओं की कतार को देखकर उन्होंने बोला की उट उट और अन्दर से पति परमेश्वर की आवाज को सुन कर बाहर देखा।
कालिदास और विद्योत्तमा की शादी को आठ दिन हो गए थे और एक हफ्ते में काफी कुछ जाने को मिला जैसे की जिसे परम विद्यावान बताकर शादी के बंधन में बाँधा गया था, वह महान मुर्ख है।
आज जब ऊंट को संस्कृत भाषा में बोलने की कोशिश को सही साबित कर दिया की ये कालिदास सच में मुर्ख है।
विद्योत्मा को इस बात से पता चला की उनके साथ बहुत बड़ा छल हुआ है और बोला ओह! एक औरत के साथ इतना बड़ा धोखा ओह! नारी कितना सहेगी तू? कितनी घुटन है तेरे भाग्य में? कब तक रोती रहेगी तू? तभी याद आया की वो कालिदास जी को खाने के लिए बुलाने आई है और उन्होंने अपने स्वामी से कहा की स्वामी भोजन तैयार है”।
“फिर खाने खाने के लिये वे चल पडा और खाते समय दोनों पति पत्नी में कोई बात नहीं हुई और हाथ धुलवाते समय पत्नी ने पति से बोला “स्वामी”|
पति ने कहा ⇒ “कहो”
पत्नी ⇒ “यदि आप मुझे अनुमति दें तो मैं आपकी ज्ञान वृद्धि में सहायक बन सकती हूँ।”
पति ⇒ तुम ज्ञान वृद्धि में “? आश्चर्य से पुरुष ने आँखे उसकी और उठाई।”
पत्नी ने कहा ⇒ बड़े ही नम्र आवाज में कहा “अज्ञान अपने सहज रूप में उतना अधिक खतरनाक नहीं होता, जितना तब होता है जब वह ज्ञान का कपड़ा अपने मुंह पर डाल ले।”
पति ने कहा ⇒ “तो……तो मैं अज्ञानी हूँ।” अटकते हुए कहा जैसे अज्ञानी कह कर सारा भेद खुल गया हो।
पत्नी ने कहा ⇒ “नहीं-नहीं आप अज्ञानी नहीं हैं।” लेकिन ज्ञान अनंत है और मैं चाहती हूँ कि आप में ज्ञान के लिए आपकी इच्छा जागे और ज्ञान का आयु से कोई लेना देना नहीं होता है। न जाने कितने बड़े बुजुर्गों ने और साधुओं ने उम्र की एक बड़ी सीमा पार करने के बाद पारंगतता प्राप्त की है और कर रहे हैं वे आज भी कुछ नया सीखने को उत्सुक रहते हैं।
पति सोच में पढ़ कर ⇒ “बात में तो दम हैं।”
पत्नी ने कहा ⇒ ज्ञान प्राप्त करने में मैं आपकी सहायता करूँगीं यदि आपकी इच्छा हो तो।
पति ने कहा ⇒ “तुम मेरी शिक्षिका बनोगी? अच्छा है, पत्नी और गुरु।” हाँ- हाँ- हाँ- करके वे जोर से हँसने लगा और अपनी पत्नी की तरफ देखने लगा। हंसी में एक बात तो जाहिर थी कि कालिदास में मुर्खता भरपूर थी और वो हसने के सिवा और कर भी क्या सकता हैं।
पत्नी ने सोचा-पति के इस प्रकार से हसने पर पत्नी (विद्योत्मा) उदास हो कर सोचने लगी की एक नारी आखिर क्यों किसी पुरुष को जन्म देती है, पालती है, बोलना चलाना सिखाती है, नारी अगर तौर तरीके सिखाती है तो नारी नीची क्यों होती है? पुरुष उचें स्तर पर क्यों होता है? पुरुष को ऊँचा स्थान क्यों दिया जाता है?
पति ने कहा ⇒ तुम कुछ सोच रही हो क्या?
पत्नी ने सर हिला कर कहा की ⇒ नहीं नहीं, “कुछ खास नहीं| और फिर कह कर फायदा भी कुछ नहीं होगा।
पति ने कहा ⇒ नहीं तुम कुछ कहना चाहती हो.. बोलो बोलो…
पत्नी ने कहा ⇒ “हम विवाहित हैं, और आपस में सुख दुःख, हानि लाभ, धन-यश को मिल जुलकर उपयोग करना ही हमारा फर्ज है और पति पत्नी में से कोई भी अकेला सुख लुटे, दुसरा दुःख दर्द में रहे ये कोई उचित बात तो नहीं हैं।
पति ने कहा ⇒ हाँ बात तो सही है।
पत्नी ने कहा ⇒ “तो आप मेरी बातों से सहमत है| आप मानते हैं की एक दाम्पत्य के जीवन के दुर्गुणों को दुसरे दाम्पत्य के अन्दर बसे गुणों से बहार निकाला जा सकता हैं।
पति ने कहा ⇒ “ठीक कहती हो” नारी की उन्नती के सामने पुरुष के अन्दर की बुराइ नीची हो रही है| तो फिर विद्या भी धन है, शक्ति है, ताकत है, जीवन का सौन्दर्य है, क्यों न हम विद्या को आपस में बाँट लें”।
तो आप मेरी सहायिका बनेंगी? तो क्या कहती हो?
पत्नी ने कहा ⇒ धीमी आवाज में कहा “हाँ” और पत्नी ने अन्दर सोचा की नारी की शक्ति के आगे पुरुष के अहंकार की हार हो चुकी हैं।
पत्नी ने शुरू किया ⇒ “तो शुभस्यशीधर्म” और कालिदास को पढ़ाने लगी।
शुरू का पाठ अक्षर ज्ञान से था। शुरू में तो कुछ अरुचि के कारण परेशानियां हुई मगर पत्नी के प्रेम ने और ज्ञान प्राप्त करने की लगन ने उन्हें व्याकरण, छंद शास्त्र, निरुक्त ज्योतिष और छहों वेदांग, षड्दर्शन, ज्ञान की सरिता आदि में खूब ज्ञान मिला। कुछ वर्षों के बाद पति विद्वान हो गये और अपनी पूजनीय पत्नी के आगे नतमस्तक थे।
सरस्वती माँ की अनुकम्पा बरस उठी और अपने अनवरत उपासना से एक ज्ञानी व्यक्ति का जीवन जीने लगे और महाकवि बन गए। सभी लोग उन्हें आश्चर्य के साथ देखने लगे और उनकी इज्जत करने लगे और साथ में शिक्षा प्राप्त करने के लिए लोग उनसे मिलने लगे। कालिदास सभी लोगों से एक बात अवश्य साझा करते की “पहचानो, नारी की गरिमा, उस कुशल शिल्पी की सृजनशक्ति, जो आदि से अब तक मनुष्य को पशुपति से मुक्त कर सुसंस्कारों की निधि प्रधान करती है और करती आई हैं।”
कुछ समय के बाद महाराज विक्रमादित्य ने उन्हें अपने दरबार में रखा। अब वे मशहुर कवी बन चुकी थे, दाम्पत्य का रहस्य सूत्र उन्हें वह सब कुछ सिखा रहा था, जो एक सच्चे और सही इंसान को प्राप्त होने चाहिए।
स्वंय के जीवन से लोकजीवन को दिशा देने वाले ये दम्पत्ति थे महाविदुषि विद्योत्मा और कविकुल चूडामणि कालिदास जिनके दिखाए गए ज्ञान के मार्ग को हमें अपनाना चाहिए और अपने परिवार को ज्ञान की तरफ अग्रसर करना चाहिए क्योंकि शिक्षा से लक्ष्मी आ सकती है मगर शिक्षा के बिना लक्ष्मी वापस चली जाती हैं।
अब मैं आपको महाकवि कालिदास के दोहे (Kalidas Ke Dohe in Hindi) के बारे में बताऊंगा।
कालिदास के वो दोहे जिसने कालिदास जी को प्रसिद्ध कर दिया और उनके प्रत्येक दोहे में बहुत कुछ सीखने को मिलता है। कालिदास एक महान कवि थे और उनकी कविताओं को आज भी पढ़ा जाता है। पहली की जो कालिदास की कविता और दोहे हुआ करते थे उनमें एक मीठा रस मिलता है जब भी पढ़ो और सुनो उनमें एक अलग रस मिलता है।
कालिदास की कविताएं में बहुत सी बातें ऐसे होती थी जो हमारे जीवन पर आधारित होती है। कविताओं में आम जीवन की बातों को पिरोया जाता था। उन कविता को पढ़कर बचपन की यादें ताजा हो जाती है। मेरी मानिए तो आप भी एक बार कालिदास की प्रमुख कविताएं और दोहे को अवश्य पढ़े।
ये तो महान कवि कालिदास जी के कुछ दोहे ही है जिन्हे लिखा गया है। अगर आपको और भी दोहे, कविताएं पढ़ना है तो बताइये। आप इन दोहे को साझा कर सकते है।
कालिदास का जीवन परिचय पढ़कर अच्छा लगा हो तो शेयर करना न भूलें। कालिदास जी के जीवन की तरह हमें भी अपना जीवन सफल बनाना है। प्रिय छात्रों, अगर आपको विद्योत्तमा और कालिदास की कहानी पसंद आई हो तो इसे सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले और टिप्पणी के माध्यम से अपने विचार हम सब के साथ शेयर करें। “धन्यवाद”
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Word best story of mahakavi Kalidas. Hindi parichay thank you for this article.
Nice information THANKS
Thanks For Sharing Story.