क्या आपको पता है मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है? अगर नहीं, तो इस लेख को अंत तक पढ़ें और मकर संक्रांति की पूरी जानकारी हासिल करें।
Makar Sankranti 2021 के शुभ पावन अवसर पर मैं आप सभी के लिए मकर संक्रांति की पूरी जानकारी आप सभी के सामने लेकर आया हूं। उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरा यह लेख अच्छा लगेगा और यदि आपको यह लेख अच्छा लगे तो शेयर जरूर करना।
आज के दौर में दुनिया में ना जाने कितने त्यौहार मनाए जा रहे हैं भारत में इतने त्योहारों की लिस्ट है लेकिन क्या करें हमारा मन नहीं भरता।
हम हिंदुस्तानी है, हिंदुस्तानियों की पहचान है हमारे त्यौहार और हमारे रीतिरिवाज..
भारतीयों के तौर तरीके त्योहारों पर जो भी धर्म जाति संप्रदाय के लोग होते हैं उन सबका एक ही मानना होता है कि यह त्यौहार है और इसमें कोई भेदभाव नहीं। अब चाहे दीपावली हो, चाहे रमजान (ईद) हो या फिर मकर संक्रांति जैसे क्यों ना हो।
मकर संक्रांति हिंदुओं के प्रमुख त्यौहारों में से पर्व है। मकर संक्रांति पूरे भारत और नेपाल में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है।
प्रत्येक वर्ष यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पंद्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। एक दिन का अंतर लौंद वर्ष (लीप वर्ष) के 366 दिन का होने की वजह से होता है।
मकर संक्रांति उत्तरायण से भिन्न है। मकर संक्रांति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है।
उत्तरायण का प्रारंभ 14 या 15 दिसम्बर को होता है। लगभग 1800 वर्ष पूर्व यह स्थिति उत्तरायण की स्थिति के साथ ही होती थी, संभव है की इसी वजह से इसको व उत्तरायण को कुछ स्थानों पर एक ही समझा जाता है।
तमिल नाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहा जाता हैं।
हमारे बड़े ज्योतिषियों के अनुसार मकर संक्रांति का त्यौहार बहुत ही महत्व रखता है जिसे हम खिचड़ी के रूप में भी जानते हैं। उत्तरी पूर्वी जिलों के अनुसार राज्य के अनुसार मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। प्राचीन कथाओं के अनुसार माना जाता है कि इस दिन खिचड़ी खाने और खिचड़ी बांटने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। खिचड़ी एक साधारण व्यंजन है, खिचड़ी खाना और खिचड़ी बांटना दोनों ही बहुत बहुमूल्य चीजें हैं।
मकर संक्रांति 2021 में किस तरह मनाई जाएगी और मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त क्या है इससे संबंधित प्रश्नों के उत्तर निम्नलिखित लिखे गए हैं।
ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य के एक राशि से दूसरी में प्रवेश करने को संक्रांति कहते हैं।
मकर संक्रांति भारत और नेपाल में मनाई जाती है।
मकर संक्रांति को हिन्दू धर्म में मनाया जाता है।
सूर्य देव जब सूर्योदय से पूर्व जिस दिन मकर राशि में प्रवेश करते हैं, उसी दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष 2021 सूर्य देव 14 जनवरी के दिन मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं, इसलिए इस वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी 2021 दिन गुरुवार को मनाई जाएगी।
14 जनवरी 2021 में तिल सकरात मनाई जाएगी।
इस दिन गंगा स्नान कर व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है।
इस दिन गंगा स्नान कर व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है।
पुरानी कहानियों के तहत कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते है क्योंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी है। इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि जी के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को नकारात्मकता तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। जिसकी वजह से मकर संक्रांति के दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक कार्यों का विशेष महत्व है।
ऐसी धारणा है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और आप को जो सही लगे दान कर देना चाहिए। दान तो दान ही होता है।
जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ट होता है-
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
प्राचीन कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति का महत्व बहुत ही मान्य है। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के पीछे एक बहुत बड़ी कथा है और मकर संक्रांति एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। मकर संक्रांति के पर्व को कई जगह उत्तरायण भी कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है।
कुछ ऐसे प्रश्न भी हैं जो मकर संक्रांति से संबंधित है। मकर संक्रांति के दिन क्या करना चाहिए, मकर संक्रांति के दिन क्या नहीं करना चाहिए?, इन सब से संबंधित प्रश्नों के उत्तर प्रश्न सहित निम्नलिखित लिखे गए हैं। कृपया पढ़िए और बताइए आपको कैसा लगा। मकर संक्रांति पूजा विधि से संबंधित सभी प्रश्नों के जवाब आपको मेरे इस मकर संक्रांति कब है, मकर संक्रांति 2021 किस दिन मनाया जाएगा, मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व, मकर संक्रांति निबंध छोटे बच्चों के लिए, मकर संक्रांति पर निबंध इस लेख में लिखे गए है।
मकर संक्रांति के बारे में बताया जाए तो मैं आपको बताता हूँ कि मकर संक्रांति भारत और नेपाल में मनाया जाता है। कृषि करना भारतीय समाज का एक बहुत ही गहरा हिस्सा है।
मकर संक्रांति का त्यौहार पूरे देश में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, जिसमें लोग अपने-अपने सांस्कृतिक रीति-रिवाज, तौर तरीके, अलग-अलग तरीके से फसल के नए सीजन का स्वागत करते हैं।
मकर संक्रांति के दिन, कई लोग ज्ञान और ज्ञान की देवी (देवी सरस्वती) से मन की स्पष्टता के लिए प्रार्थना करते हैं। यह त्यौहार अनैतिक और अस्वास्थ्यक व्यवहार से वापस खींचने के महत्व पर प्रकाश डालता है, जबकि इसके बजाय शांतिपूर्ण और सकारात्मक लोगों के लिए अभ्यास करते हैं।
महोत्सव का महत्व “मकर” का अर्थ राशि चक्र, मकर और संक्रांति से है। जिसे संस्कृत में मकर भी कहा जाता है, यह त्योहार सूर्य के मकर राशि में आने का जश्न मनाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ग्रह, शनि, मकर राशि पर शासन करता है और माना जाता है कि यह ग्रह सूर्य देव का (भगवान सूर्य का) पुत्र है।
सरल शब्दों में इसका मतलब है कि इस समय के दौरान, सूर्य अपने बेटे के साथ रहने के लिए आता है।
इस अवधि में किसी भी पुरानी कड़वाहट और झगड़े को छोड़ देने का संकेत दिया जाता है, जो किसी भी पुरानी कड़वाहट और नाराजगी को पीछे छोड़ देता है ताकि किसी को उस सुंदरता और प्रेम को जाने दिया जाए जो दुनिया को देना है!
सूर्य से ऊर्जा और प्रोत्साहन के साथ, उन लोगों के साथ अधिक सार्थक संबंध स्थापित करें जिनसे आप प्यार करते हैं, मूर्खतापूर्ण तर्क और झगड़े को छोड़ दें और खुशहाल समय पर ध्यान केंद्रित करें।
इस त्योहार को अपने प्रियजनों को सकारात्मक बातें फैलाकर मनाए। यह त्यौहार विशेष रूप से अन्य हिंदू त्योहारों से अलग होता है क्योंकि मकर संक्रांति मनाने की तिथि निश्चित है, अर्थात यह हर साल 14 जनवरी को ही मनाया जाता है। यह वही समय है जिसके चारों ओर सूर्य उत्तर की ओर संक्रमण करना शुरू कर देता है।
त्यौहार उस बिंदु को भी चिह्नित करता है, जहां से ठंडी, छोटी, सर्दियों के दिन लंबे और गर्म महीनों का रास्ता देते हैं।
सर्दियों के मौसम के दौरान सीमित धूप फसलों की अच्छी फसल में बाधा डालती है, और यही कारण है कि सूर्य उत्तर की ओर बढ़ने के साथ, पूरे देश में बेहतर फसल की संभावना के साथ आनन्दित होता है।
उत्सव अनुष्ठान देश के विभिन्न भागों में त्योहारों को असंख्य सांस्कृतिक रूपों में मनाया जाता है। हर क्षेत्र के अलग-अलग नाम हैं, और जश्न मनाने के अलग-अलग तरीके; उनके स्थानीयकरण, संस्कृति और परंपराओं के अनुसार अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों को आधार बनाना।
मकर संक्रांति त्योहार असम में माघ बिहू, गुजरात में उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल और पंजाब में लोहड़ी के रूप में जाना जाता है।
किसी भी अन्य त्योहार की तरह, मकर संक्रांति के भव्य त्योहार को मनाने के लिए विभिन्न रीति-रिवाज और पारंपरिक अनुष्ठान हैं।
कुछ उत्सवों में विशेष भोजन व्यंजन और मिठाइयाँ तैयार करना शामिल होता है, जैसे कलगाया कुरा, रंगीन हलवा और सबसे लोकप्रिय मिठाई, तिल के लड्डू।
पतंगबाजी उत्तरायण का एक अभिन्न अंग है, जिसे गुजरात राज्य में सबसे बड़े त्योहारों में से एक माना जाता है, इतना है कि स्थानीय लोग भी इस त्योहार को अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव के रूप में जानते हैं।
धार्मिक राज्यों में, मकर संक्रांति, हिंदुओं के बड़े और पवित्र स्नान दिनों में से एक है। लोग पवित्र जल में स्नान के लिए पवित्र स्थानों की यात्रा करने के लिए भारी भीड़ में जाते हैं।
आमतौर पर, लोग इलाहाबाद और वाराणसी, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक जाते हैं। गंगासागर या सागर द्वीप, जो गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित है, एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थान है, जो इस त्योहार के दौरान आता है।
इस दिन पूरे देश में बड़े और छोटे मेले (या मेले) आयोजित किए जाते हैं। कुछ प्रसिद्ध हैं, कुंभ मेला, गंगासागर मेला और ओडिशा में मकर मेला।
ये तो मकर संक्रांति के बारे में कुछ जानकारी है और इसे किस तरह मनाया जाता है। Makar Sankranti Puja Vidhi निम्नलिखित है और इसे किस तरह मनाया जाने वाला है।
इस साल ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार सूर्य की मकर राशि में संक्रांति 15 जनवरी, बुधवार को सुबह 7:54 बजे होगी। इसलिए इसी दिन मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाएगा। यह त्योहार देश भर में मनाया जाता है। हर राज्य में इसे अलग नाम और अलग परंपरा के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति से संबंधित भविष्य प्रश्नों के जवाब आपको मिल चुके हैं।
मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त कब है?
पुण्य काल मुहूर्त: | सुबह 08:03:07 से 12:30:00 तक |
महापुण्य काल मुहूर्त: | सुबह 08:03:07 से 08:27:07 तक |
मकर संक्रांति के दिन दान-दक्षिणा का विशेष महत्व-
ज्योतिष विद्वानों का कहना है कि इस दिन किया गया दान पुण्य और अनुष्ठान अभीष्ठ फल देने वाला होता है।
ज्योतिषियों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन दिन प्रातः काल स्नान कर लोटे में लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें। सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें।
विद्वान पंडित श्री राकेश झा शास्त्री जी का कहना है कि सनातन धर्म में मकर संक्रांति को मोक्ष की सीढ़ी बताया गया है। मान्यता है कि इसी तिथि पर भीष्म पितामह को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
इसके साथ ही सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण हो जाते हैं जिस कारण से खरमास समाप्त हो जाता है। प्रयाग में कल्पवास भी मकर संक्रांति से शुरू होता है।
इस दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है। गंगा स्नान को मोक्ष का रास्ता माना जाता है और इसी कारण से लोग इस तिथि पर गंगा स्नान के साथ दान करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव जब मकर राशि में आते हैं तो शनि की प्रिय वस्तुओं के दान से भक्तों पर सूर्य की कृपा बरसती है। इस कारण मकर संक्रांति के दिन तिल निर्मित वस्तुओं का दान शनिदेव की विशेष कृपा को घर परिवार में लाता है।
आइए जानते हैं कि इस दिन राशि अनुसार किस चीज का दान करने से व्यक्ति को पुण्य फल की प्राप्ति के साथ उसका 100 गुना वापस मिलता है।
मकर संक्रांति के दिन आप किसी भी तरह का नशा नहीं करें। शराब, सिगरेट, गुटखा आदि जैसे सेवन से आपको बचना चाहिए। इस दिन मसालेदार भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन तिल, मूंग दाल की खिचड़ी इत्यादि का सेवन करना चाहिए और इन सब चीजों का यथाशक्ति दान करना चाहिए।
पौष मास में जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है तभी हिन्दू मकर संक्रांति मनाते है। माना जाता है कि इस भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं जो कि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं। इसलिए इस त्यौहार को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
👉 उत्तर प्रदेश: मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। सूर्य की पूजा की जाती है, चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान में दी जाती है।
मेष: | तिल-गुड़ का दान दें, उच्च पद की प्राप्ति होगी। |
वृष: | तिल डालकर अर्घ्य दें, बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी। |
मिथुन: | जल में तिल, दूर्वा तथा पुष्प मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, ऐश्वर्य प्राप्ति होगी। |
कर्क: | चावल-मिश्री-तिल का दान दें, कलह-संघर्ष, व्यवधानों पर विराम लगेगा। |
सिंह: | तिल, गुड़, गेहूं, सोना दान दें, नई उपलब्धि होगी। |
कन्या: | पुष्प डालकर सूर्य को अर्घ्य दें, शुभ समाचार मिलेगा। |
तुला: | सफेद चंदन, दुग्ध, चावल दान दें। शत्रु अनुकूल होंगे। |
वृश्चिक: | जल में कुमकुम, गुड़ दान दें, विदेशी कार्यों से लाभ, विदेश यात्रा होगी। |
धनु: | जल में हल्दी, केसर, पीले पुष्प तथा मिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, चारों-ओर विजय होगी। |
मकर: | तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, अधिकार प्राप्ति होगी। |
कुंभ: | तेल-तिल का दान दें, विरोधी परास्त होंगे। |
मीन: | हल्दी, केसर, पीत पुष्प, तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, सरसों, केसर का दान दें, सम्मान, यश बढ़ेगा। |
विभिन्न नाम भारत के बाहर
नेपाल के सभी अलग-अलग शहरों में अलग-अलग रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।
किसान अपनी अच्छी फसल के लिये मकर संक्रान्ति के दिन भगवान को धन्यवाद देते है। इसलिए मकर संक्रान्ति के त्यौहार को फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है।
नेपाल में मकर संक्रान्ति को माघे-संक्रान्ति, सूर्य उत्तरायण और थारू समुदाय में माघी कहा जाता है। इस दिन नेपाल सरकार सार्वजनिक छुट्टी देती है। ये त्यौहार थारू समुदाय का यह सबसे प्रमुख त्यैाहार है।
नेपाल के बाकी समुदाय भी तीर्थ स्थल में स्नान करके दान-धर्मादि करते हैं और तिल, घी, शर्करा और कन्दमूल खाकर धूमधाम से मनाते हैं।
नेपाल में तीर्थ स्थलों में रूरूधाम (देवघाट) व त्रिवेणी मेला सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पहले 13 जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल गुड चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है।
इस अवसर पर लोग मूँगफली, तिल की बनी हुई गज्जक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं। बेटियाँ घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी माँगती हैं।
लोहड़ी के दिन नई बहू और नवजात बच्चे (बेटे) के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों का साग का आनन्द भी उठाया जाता हैं।
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को मुख्य रूप से “दान का पर्व” है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला भी लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है।
इलाहाबाद में हर साल 14 जनवरी से ही माघ मेले की शुरुआत होती है। 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है।
एक समय था जब उत्तर भारत में 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को अंजाम भी नहीं दिया जाता था। ये मास खर मास माना जाता है। सगाई शादी – विवाह आदि नहीं किये जाते थे।
आज भी ऐसा विश्वास है कि 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आखिरी शाही स्नान तक चलता है।
संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है। बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं।
इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है।
इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।
बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।
महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं।
तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं – “तिळ गूळ घ्या आणि गोड़ गोड़ बोला” अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं।
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।
मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं।
वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है- “सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।”
तमिलनाडु में मकर संक्रांति के त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं।
प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल।
इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है।
पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।
राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्य सूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।
इस प्रकार मकर संक्रान्ति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।
मकर संक्रान्ति के शुभ अवसर पर गंगा जल से या फिर गंगास्नान एवं गंगातट पर जाकर स्नान करने के बाद जो भी दान किया जाता है जितनी क्षमता होती है उसको अत्यन्त शुभ माना गया है।
इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की माना गया है।
सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश या संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है।
भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है।
किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है जिसकी वजह से इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है।
दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा।
अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी।
ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।
सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है।
मकर सक्रांति 2021 की जानकारी आप सभी को मिल ही गई है आप सभी को जानकारी अच्छी लगी होगी तो जरूर इसे शेयर करें।
अगर इनके अलावा भी आपके कोई प्रश्न हैं तो आप हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं हम पूरी कोशिश करेंगे कि आपके सभी समस्याओं का जवाब हम दे सके धन्यवाद।
मकर सक्रांति वैसे तो हिंदुओं का त्यौहार है लेकिन ऐसा कहीं भी लिखा नहीं गया है कि से केवल हिंदू ही मनाएंगे। जिनकी इच्छा हो जिनकी श्रद्धा हो स्टार का आनंद उठा सकते हैं और आप इस makar sankranti 2021 की जानकारी को व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर शेयर कर सकते हैं। धन्यवाद॥
– मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?
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