भगवान राम अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र थे। उन्हें 14 साल के वनवास पर भेज दिया गया। रावण ने श्री राम की पत्नी “सीता” का अपहरण कर लिया और लंका ले गया। इसके बाद श्री राम ने रावण के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। उन्होंने देवी दुर्गा की 9 दिनों तक लगातार पूजा की, और रावण को हराने के लिए उनसे वरदान प्राप्त किया।
ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने “शुक्ला दशमी“ के दिन रावण का वध किया था। इस दिन तक, हम अपने प्रिय भगवान श्री राम का सम्मान करने के लिए नवरात्रि और दीपावली मनाते हैं। रामायण की रचना सबसे पहले महर्षि वाल्मीकि ने की थी। तब से विभिन्न लोगों ने विभिन्न भाषाओं में रामायण की रचना की है, जिसमें तुलसीदास की “रामचरितमानस” सबसे प्रसिद्ध है। जैसे वेद शास्त्रों ने मनुष्यों को जीवन एवं प्रकृति का ज्ञान प्रदान किया है। वैसे ही रामायण महाकाव्य ने, युगों युगों तक मनुष्य जाति को एक मर्यादित आदर्श मनुष्य होने का ज्ञान प्रदान किया है।
जीवन में किसी भी परिस्थितियों का सामना कैसे किया जाना उचित होता है, यह हमें प्रभु श्रीराम के विचारों से सीखने को मिलता है।
भगवन श्री राम जी के अनमोल वचन मनुष्य धर्म और उनके कर्तव्य को दर्शाता है। अगर सभी मनुष्य श्रीराम जी के वचन पर चले तो यह घोर कलियुग व सतयुग बन जायेगा। हम इस लेख में आपको रामायण में वर्णित भगवान राम जी के अनमोल वचन से अवगत करवाने लगे है इसलिए लेख को अंत तक पढ़े।
१:– पहला वचन :–
( श्लोक :–>दुर्लभं हि सदा सुखं)
भगवान राम जब अपने पिता दशरथ जी को टूटा हुआ देखते है तब प्रभु राम माता कैकेयी से कहते है कि अगर इस जीवन में अगर कोई मनुष्य सदैव खुश रहना चाहता है तो वह ब्रह्म में है क्यों सुख और दुःख दोनों ज्वर और भाटी की समान आना जाना लगा रहता है। इसका भाव यह है कि सुख दुःख चिरस्थायी जीवन में चिरकताये नहीं है। एक ज्ञानी और धर्म परायण व्यक्ति इनसे विचलित नहीं होता।
२:–>दूसरा वचन :–> (रामो द्विर्नाभिभाषते)
रघुकुल नीति सदः अपनाएं जान चली जाए लेकिन वचन न जाये।
पिता ने जो व वचन दिया क्यों न हो मेरा धर्म और कर्तव्य है की मैं अपने पितृदेव के हर वचन को पूरा करू। एक बार राम ने वचन दे दिया तो पीछे नहीं हटता। इसका अभिप्राय यह व नहीं अगर हम किसी को वचन दे तो उससे पूरा करना हमारा धर्म है।
३:—> तीसरा वचन :-
(न सुप्रीतकरं तत्तु मात्रा पित्रा च यत्कृतं)
जब ऋषि वशिष्ठ जी और भरत जी राम जी को वन में वापिस लेना जाते है तब श्री राम जी यह श्लोक के माध्यम से राम जी कहते है की कोई व संतान अपने माता एवं पिता का ऋण कभी नहीं चूका सकता चाहे वह अपने माता पिता के लिए कितना व श्रेष्ठ कार्य क्यों न कर दे। वह कभी इस ऋण से मुक्त नहीं हो सकता है।
इसका तात्पर्य यह है कि हमें अपने माता पिता की सेवा करने का अवसर नहीं छोड़ना चाहिए। माता पिता को कष्ट देना परमेश्वर को कष्ट देना के समान है।
4 :-चौथा वचन :-
(लक्ष्मी चन्द्रादयोयादवा हिमवान् वा हिमं त्यजेत् अतियादसागरो वेला न प्रतिज्ञा मां पितु:)
इस श्लोक के माध्यम से प्रभु श्री राम ऋषि वशिष्ठ जी को कहते है कि चंद्र अपनी शोभा छोड़ सकता है। गिरिराज हिमालय हिमपात हिन् हो सकता है और सागर अपना तट बदल सकता है लेकिन में अपने माता पिता के वचनों का उल्लंघन कभी नहीं कर सकता।
इसका तात्पर्य यह है कि हमें अपने माता पिता की हर आगया का पालन करना चाहिए। शास्त्र के अनुसार माता के मुख से माँ सरस्वती बच्चे के अंदर ज्ञान का बीज अंकुरित करती है और पिता के रूप में स्वयं श्री हरी नारायण अपने बच्चे का ललन पालन करती है।
5 – पांचवा वचन :–>
(उद्विजन्ते यथा सपर्ता नरादनृत्य वादिन)
जब ऋषि जाबालि ने, राम जी को अयोध्या वापिस भेजने के लिए एक अज्ञानी भाटी तर्क दिया। तब श्री राम ने श्लोक के माध्यम से कहा की जैसे एक विषैला सर्प को देख लोग भयभीत हो जाते है उसी तरह लोग एक मिथ्या वादी व्यक्ति को देख डर जाते है और मिथ्या वादी व्यक्ति को कोई पसंद नहीं करता। सत्य हे धरम है और धर्म का पालन करना एक मनुष्य का कर्तव्य है। एक सत्य वादी पुरुष कभी भी झूठ का सहारा नहीं लेता है सत्य में हे उसका जीवन निहित रहता है।
6 :- छटा वचन :–>
(कुलीनमकुलीन वा वीरं पुरषमानिन’ चारित्रमेव व्याख्याति शुचिम वा यदि वाऽशुचिम)
इस श्लोक में श्री राम ऋषि ज्वाली से कहते है कि मनुष्य का चरित्र यह निर्धारित करता है की मनुष्य अकुलीन है यह कुलीन, कपटी है या सज्जन, वीर है यह वीरू, यह उसका केवल उसको मर्दानगी पर गर्व है मनुष्य के विचार एवं चरित्र से उसका पूर्ण परिचय मिलता है।
वैसे तो प्रभु श्री राम जी का हर वचन मनुष्य के जीवन में अति कल्याणकारी है। उन सभी वचनों में एक वचन है जो मनुष्य को धर्म के प्रति बहुत तेजी से अग्रसर करता है। इन वचनों में ज्यादातर माता पिता के महत्व का वर्णन किया है। लेखक: loveleen thakur
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