आज हम एक महान हस्ती की बात बताने जा रहा हूँ जिनका भारत की आजादी में बहुत बड़ा योगदान था| इन्हे लौह पुरुष भी कहा जाता है| जी हाँ हम बात कर रहे हैं सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन परिचय की|
सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत की आजादी के बाद सबसे पहले ग्रह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री थे| ये भारतीय थे| भारत की आजादी के पीछे इनका बहुत बड़ा योगदान था.
सरदार वल्लभ भाई पटेल (गुजराती: સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલ ; 31 अक्टूबर, 1875 – 15 दिसंबर, 1950) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे.
भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाता है.
जब बारडोली सत्याग्रह नामक सत्यागृह चल रहा था| इस सत्यागृह का नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा हुआ था| वल्लभ भाई पटेल को बारडोली सत्याग्रह की सफलता पर वहाँ की बहुत सी महिलाओं ने सरदार की उपाधि प्रदान की.
वल्लभ भाई पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात (भारत) में एक (गुर्जर) कृषक परिवार में हुआ था। वल्लभ भाई पटेल के माता पिता श्री मति लाडबा देवी एवं श्रीमान झवेरभाई पटेल थे.
वल्लभ भाई पटेल झवेरभाई पटेल एवं लाडबा देवी की चौथी संतान थे| सोमाभाई, नरसीभाई और विठ्ठलभाई उनके अग्रज थे.
वल्लभ भाई पटेल की शिक्षा मुख्यतः उन्होने अपने आप ही की थी| वल्लभ भाई पटेल ने बैरिस्टर की पढाई लंदन जाकर की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे.
वल्लभ भाई महात्मा गांधी जी के आंदोलनों से सहमत थे उनके विचारों से उन्हे कोई द्वेष नहीं था बल्कि महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया.
सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान भारत की स्वतंत्रता आन्दोलन में खेडा संघर्ष में हुआ| उन दिनों गुजरात का खेडा खण्ड (डिविजन) भयंकर सूखे की चपेट में जी रहा था.
उन दिनों अंग्रेजों ने भारी कर लगा दिये थे जो की प्रत्येक किसान के लिए गरीबी में अनता गीला वाली बात थी| जिसके चलते किसानों ने अंग्रेज सरकार से कर में छूट की मांग की लेकिन अंग्रेजों ने उनकी यह बात नहीं मानी.
जब यह निवेदन स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया| अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी| यह सरदार वल्लभ भाई पटेल की पहली सफलता थी.
भारत की आजादी के बाद भारत की अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियां पटेल के साथ में थी, गांधी जी चाहते थे की सरदार वल्लभ भाई पटेल प्रधानमंत्री के पद न बैठे उन्हे अन्य कामों में अपना योगदान देना.
महात्मा गांधी जी की बात को मानते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल ने प्रधानमंत्री के पद से खुद को दूर रखा और प जवाहर लाल नेहरू जी को प्रधानमंत्री बनने दिया.
सरदार पटेल को उप प्रधान मंत्री एवं गृह मंत्री का कार्य सौंपा गया| इसके बाद भी नेहरू और पटेल के संबंध तनावपूर्ण ही रहे| नेहरू पटेल के बीच में तनाव के चलते चलते कई अवसरों पर दोनो ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी.
गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाना था| इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये संपादित कर दिखाया| केवल हैदराबाद स्टेट के ऑपरेशन पोलो के लिये उनको सेना भेजनी पडी.
भारत में सभी जतियों के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरूष के रूप में जाना जाता है| सन् 1950 में उनका देहान्त हो गया|
पटेल साहब के दिहान्त के बाद जवाहर लाल नेहरू जी के विरोध में खड़े होने वाले लोगों में से कमी आ गयी|
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत की आजादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही वीपी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य शुरू कर दिये थे.
वल्लभ भाई पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा| इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडे ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.
केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद स्टेट के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा| जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध किया गया तब जूनागद का नवाब जूनागद से भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया.
जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तब सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया|
किन्तु जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है| जिसकी वजह से कश्मीर अलग है|
भारत की आजादी के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी व प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल में जमीन आसमान का अंतर था.
जब की दोनों ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी (वकालत) की डिग्री प्राप्त की थी लेकिन वल्लभ भाई पटेल वकालत में पं॰ नेहरू से बहुत आगे थे तथा उन्होंने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था.
जवाहर लाल नेहरू जी केवल सोचते रहते थे इधर सरदार वल्लभ भाई पटेल उस काम को कर डालते थे| कहा जाता है की नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे, पटेल शस्त्रों के पुजारी थे.
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी ऊंची शिक्षा पाई थी उच्च स्तर की पढ़ाई की थी लेकिन उनमें चींटी बराबर भी अहंकार नहीं था| वे स्वयं कहा करते थे, मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊंची उड़ानें नहीं भरीं|
मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है| पं॰ नेहरू अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे.
भारत की स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी बन गए थे.
सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना|
विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो| 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी.
एक बार की बात है जब उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का बड़ा भारी क्षेत्र है और इस भूमि को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है| उसी दिन सरदार पटेल चिंतित हो उठे|
उन्होंने अपना एक थैला उठाया, वी.पी. मेनन को साथ लिया और चल पड़े| पटेल उड़ीसा पहुंचे, वहां के 23 राजाओं से कहा, “कुएं के मेढक मत बनो, महासागर में आ जाओ।” उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई.
फिर नागपुर पहुंचे, यहां के 38 राजाओं से मिले| इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था, यानी जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोड़कर सलामी दी जाती थी.
पटेल ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुंचे। वहां 250 रियासतें थी। कुछ तो केवल 20-20 गांव की रियासतें थीं|
सबका एकीकरण किया| एक शाम मुम्बई पहुंचे। आसपास के राजाओं से बातचीत की और उनकी राजसत्ता अपने थैले में डालकर चल दिए.
पटेल पंजाब गये| पटियाला का खजाना देखा तो खाली था| फरीदकोट के राजा ने कुछ आनाकानी की| सरदार पटेल ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पैंसिल घुमाते हुए केवल इतना पूछा कि “क्या मर्जी है?” राजा कांप उठा।
अंत में 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया| इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया तथा जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया.
13 नवम्बर को सरदार पटेल ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना|
1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया। न कोई बम चला, न कोई क्रांति हुई, जैसा कि डराया जा रहा था.
जहां तक कश्मीर रियासत का प्रश्न है इसे पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु यह सत्य है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे| नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था.
भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, “रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।”
जहां तक विदेश विभाग पं॰ नेहरू का कार्यक्षेत्र था, परंतु कई बार उप प्रधानमंत्री होने की वजह से कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में उनका जाना होता था| उनकी दूरदर्शिता का लाभ यदि उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म न होता.
सन् 1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और चीन का रवैया कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था|
अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था.
महात्मा गांधी जी ने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा|
1950 में नेपाल के संदर्भ में लिखे पत्रों से भी पं॰ नेहरू सहमत न थे। 1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लम्बी वार्ता सुनने के पश्चात सरदार पटेल ने केवल इतना कहा “क्या हम गोवा जाएंगे, केवल दो घंटे की बात है।”
नेहरू इससे बड़े नाराज हुए थे| यदि पटेल की बात मानी गई होती तो 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा न करनी पड़ती|
गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं (आई.सी.एस.) का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (आई.ए.एस.) बनाया|
अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की ओर मोड़ा| यदि सरदार पटेल कुछ वर्ष जीवित रहते तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता.
सरदार वल्लभ भाई पटेल जहा तक पाकिस्तान की चालाकी पूर्ण चालों से सतर्क थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे।
विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे| अनेक विद्वानों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे|
लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था “बिस्मार्क की सफलताएं पटेल के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। यदि पटेल के कहने पर चलते तो कश्मीर, चीन, तिब्बत व नेपाल के हालात आज जैसे न होते|
पटेल सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे| उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता तथा महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे केवल सरदार ही
नहीं बल्कि भारतीयों के हृदय के सरदार थे। उनकी याद में व उनके सम्मान में उनकी बहुत बड़ी मूर्ति बनाई गयी है| जिसका नाम है “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” रखा गया है.
भारतीय लोगों की शान सरदार वल्लभ भाई पटेल जिंहोने निरन्तर संघर्षपूर्ण जीवन जीने वाले सरदार पटेल को स्वतंत्र रूप से पुस्तक-रचना का अवकाश नहीं मिला, परंतु उनके लिखे पत्रों, टिप्पणियों एवं उनके द्वारा दिये गये व्याख्या के रूप में बृहद् साहित्य उपलब्ध है, जिनका संकलन विविध रूपाकारों में प्रकाशित होते रहा है.
इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण तो सरदार पटेल के वे पत्र हैं जो स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में दस्तावेज का महत्व रखते हैं| सन् 1945 से 1950 ई० की समयावधि के इन पत्रों का सर्वप्रथम दुर्गा दास के संपादन में (अंग्रेजी में) नवजीवन प्रकाशन मंदिर से 10 खंडों में प्रकाशन हुआ था.
इस बृहद् संकलन में से चुने हुए पत्र-व्यवहारों का वी० शंकर के संपादन में दो खंडों में भी प्रकाशन हुआ, जिनका हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया.
इन संकलनों में केवल सरदार पटेल के पत्र न होकर उन-उन संदर्भों में उन्हें लिखे गये अन्य व्यक्तियों के महत्वपूर्ण पत्र भी संकलित हैं|
विभिन्न विषयों पर केंद्रित उनके विविध रूपेण लिखित साहित्य को संकलित कर अनेक पुस्तकें भी तैयार की गयी हैं| उनके समग्र उपलब्ध साहित्य का विवरण इस प्रकार है:-
सरदार वल्लभ भाई पटेल के सम्मान में भारतीय सरकार, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में 31 अक्टूबर 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयंती के मौके पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभ भाई पटेल के एक नए स्मारक का शिलान्यास किया.
यह लौह से निर्मित वल्लभ भाई पटेल की एक विशाल प्रतिमा लगाने का निश्चय किया गया, अतः इस स्मारक का नाम “एकता की मूर्ति” (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) रखा गया है| यह मूर्ति “स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी (93 मीटर) से दुगनी ऊंची है.
इस प्रस्तावित प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप पर स्थापित किया गया है जो केवाड़िया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है|
स्थापित हो जाने पर सरदार वल्लभ भाई पटेल की यह प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची धातु मूर्ति हो गयी है, जो 5 वर्ष बाद पूरी तरह से तैयार हो गई है जिसका 31 अक्टूबर 2018 को उदघाटन भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के हाथों से हुआ है.
सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति बन गयी है| जिसका नाम “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” है| भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इसका उदघाटन करा था| सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिन के अवसर पर|
इस मूर्ति को बनाने में पूरे 2990 करोड़ का खर्चा सामने आया है| सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति में बनाने के लिए 2500 मजदूरों की एक टीम लगी थी.
भारत की पहली उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की मूर्ति दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है|
सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति कैसे बनाई गयी ?
यह मूर्ति नर्मदा बांध की दिशा में, उससे 3.2 किमी दूर साधू बेट नामक नदी द्वीप पर बनाई गयी है| आधार सहित इस मूर्ति की कुल ऊँचाई 240 मीटर है जिसमे 58 मीटर का आधार तथा 182 मीटर की मूर्ति है|
यह मूर्ति इस्पात साँचे, प्रबलित क्रिकेट तथा कांस्य लेपन से युक्त है| इस स्मारक की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
सरदार वल्लभ भाई महात्मा गांधी जी को बहुत मानते थे उनकी इज्जत करते थे, महात्मा गांधी जी की कही हुई बातों को सर्वोपरि मानते थे|
लेकिन 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी जी की हत्या कर दी गयी| इस बात का वल्लभ भाई पटेल पर बहुत गहरा असर पड़ा और कुछ समय के बाद करीब 19-20 महीनों के बाद उन्हे हार्ट अटेक दिल का दौरा आ गया और 15 दिसम्बर 1950 को उन्होने हमें छोड़ दिया.
हर वर्ष, राष्ट्रीय त्योहारों के अवसर पर, दूरदर्शन आकाशवाणी से,
प्रथम प्रधान मंत्री नेहरू का,गुणगान सुन-
मैं भी चाहता हूं,उनकी जयकार करूं,
राष्ट्र पर उनके उपकार,मैं भी स्वीकार करूं।
लेकिन याद आता है तत्क्षण,मां का विभाजन,
तिब्बत समर्पण,चीनी अपमान,कश्मीर का तर्पण –
भृकुटि तन जाती है,मुट्ठी भिंच जाती है।
विद्यालय के भोले बच्चे,हाथों में कागज का तिरंगा ले,
डोल रहे,इन्दिरा गांधी की जय बोल रहे।
मैं फिर चाहता हूं,उस पाक मान मर्दिनी का
स्मरण कर,प्रशस्ति गान गाऊं।
पर तभी याद आता है –पिचहत्तर का आपात्काल,
स्वतंत्र भारत में फिर हुआ था एक बार,
परतंत्रता का भान।याद कर तानाशाही,
जीभ तालू से चिपक जाती है, सांस जहां कि तहां रुक जाती है।
युवा शक्ति की जयघोष के साथ, नारे लग रहे –
राहुल नेतृत्व लो, सोनिया जी ज़िन्दाबाद;
राजीव जी अमर रहें।चाहता हूं,
अपने हम उम्र पूर्व प्रधान मंत्री को, स्मरण कर गौरवान्वित हो जाऊं,
भीड़ में, मैं भी खो जाऊं। तभी तिरंगे की सलामी में
सुनाई पड़ती है गर्जना,बोफोर्स के तोप की,
चर्चा २-जी घोटाले की।चाल रुक जाती है,
गर्दन झुक जाती है।
आकाशवाणी, दूरदर्शन,सिग्नल को सीले हैं,
पता नहीं –किस-किस से मिले हैं।
दो स्कूली बच्चे चर्चा में मगन हैं,सरदार पटेल कोई नेता थे,
या कि अभिनेता थे?
मैं भी सोचता हूं –उनका कोई एक दुर्गुण याद कर,
दृष्टि को फेर लूं,होठों को सी लूं।
पर यह क्या?कलियुग के योग्य,
इस छोटे प्रयास में, लौह पुरुष की प्रतिमा, ऊंची, और ऊंची हुई जाती है।
आंखें आकाश में टिक जाती हैं –
पर ऊंचाई माप नहीं पाती हैं।
सरदार वल्लभ भाई पटेल की कवितायें|
खुशबू से जिसकी महका सारा हिन्दुस्तान
वो थे वल्लभ भाई पटेल भारत की शान।
प्रतिभाशाली, व्यक्तित्व के धनी थे सरदार
भारत की आजादी के नायक थे महान।।
आजादी के बाद बिखरी रियासतों का
किया एकीकरण,लौह पुरुष कहलाये।
स्वाध्याय से प्रांरभिक शिक्षा ली फिर लंदन
जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई में प्रथम आये।।
बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद
सरदार की उपाधि वहां की महिलाओं ने दी
दुश्मनों के लिए लौह पुरुष थे सरदार पटेल
इनको मरणोपरांत भारत रत्न की उपाधि दी।।
हृदय कोमल,आवाज में सिंह सी दहाड़ थी
भारतीय राजनीति के प्रखण्ड विद्वान थे।।
शत् शत् नमन ऐसे महान व्यक्ति को
वे भारत की आन बान और शान थे।।
– उषा अग्रवाल
#1. मनुष्य को ठंडा रहना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए| लोहा भले ही गर्म हो जाए, हथौड़े को तो ठंडा ही रहना चाहिए अन्यथा वह स्वयं अपना हत्था जला डालेगा| कोई भी राज्य प्रजा पर कितना ही गर्म क्यों न हो जाये, अंत में तो उसे ठंडा होना ही पड़ेगा।
#2. आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिये।
#3. इस मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है|
#4. जीवन की डोर तो ईश्वर के हाथ में है, इसलिए चिंता की कोई बात हो ही नहीं सकती|
#5. काम करने में तो मजा ही तब आता है, जब उसमे मुसीबत होती है मुसीबत में काम करना बहादुरों का काम है मर्दों का काम है कायर तो मुसीबतों से डरते हैं लेकिन हम कायर नहीं हैं, हमें मुसीबतों से डरना नहीं चाहिये।
#6. एकता के बिना जनशक्ति शक्ति नहीं है जबतक उसे ठीक तरह से सामंजस्य में ना लाया जाए और एकजुट ना किया जाए, और तब यह आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है.
#7. यह हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह यह अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। हर एक भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह एक राजपूत है, एक सिख या जाट है। उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक
भारतीय है और उसे इस देश में हर अधिकार है पर कुछ जिम्मेदारियां भी हैं|
#8. शक्ति के अभाव में विश्वास व्यर्थ है। विश्वास और शक्ति, दोनों किसी महान काम को करने के लिए आवश्यक हैं।
#9. ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, उनके साथ अक्सर मैं हंसी-मजाक करता हूँ। जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमयी छाया से दूर रह सकता है जो इंसान के माथे पर चिंता की रेखाएं छोड़ जाती है|
#10. यहाँ तक कि यदि हम हज़ारों की दौलत गवां दें, और हमारा जीवन बलिदान हो जाए, हमें मुस्कुराते रहना चाहिए और ईश्वर एवं सत्य में विश्वास रखकर प्रसन्न रहना चाहिए|
1. बोलते समय कभी भी मर्यादा का साथ नही छोड़ना चाहिए, गालिया देना तो बुजदिलो की निशानी है|
2. जब वक्त कठिन दौर से गुजर रहा होता है तो कायर बहाना ढूढ़ते है जबकि बहादुर साहसी व्यक्ति उसका रास्ता खोजते है|
3. हमारे देश की मिट्टी में कुछ अनूठा है तभी तो कठिन बाधाओं के बावजूद हमेसा महान आत्माओ का निवास स्थान रहा है|
4. हमारे जीवन की डोर तो ईश्वर के हाथ में है इसलिए चिंता की कोई बात नही हो सकती है|
5. ज्यादा बोलने से कोई फायदा नही होता है बल्कि सबकी नजरो में अपना नुकसान ही होता है|
6. अविश्वास भय का कारण होता है|
7. हमे अपमान सहना भी सीखना चाहिए|
8. शत्रु का लोहा चाहे कितना भी गर्म क्यू न हो जाये पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही अपना काम कर देते है|
9. मेरी यही इच्छा है की अपना देश भारत एक अच्छा उत्पादक बने जीससे कोई भूखा न हो और न ही अन्न के लिए किसी को आसू बहाना पड़े
10. जनशक्ति ही राष्ट्र की एकता शक्ति है|
11. यह सत्य है की पानी में जो लोग तैरना जानते है वही डूबते है मगर किनारे खड़े वाले नही, लेकिन ऐसे लोग कभी तैरना भी नही जान पाते है|
12. उतावले उत्साही व्यक्ति से बड़ा परिणाम निकलने की आशा नही रखनी चाहिए|
13. जीवन में सबकुछ एक दिन में तो नही हो जाता है|
14. अगर आपके पास शक्ति में कमी है तो फिर आपके विश्वास का कोई काम नही,क्योंकि महान कार्यो के लिए शक्ति और विश्वास दोनों का होना जरुरी है|
15. जब तक इन्सान अपने अंदर के बच्चे की भावना को जिन्दा रख सकता है तब तक उसका जीवन अंधकारमय छाया से दूर रह सकता है|
16. जीवन में जितना दुःख भोगना लिखा है उसे तो भोगना ही पड़ेगा तो फिर व्यर्थ में चिंता क्यूँ करना ?
17. जिसका कोई भी मित्र न हो उसका भी मुझे मित्र् बन जाना मेरे स्वाभाव में है|
18. आपके अच्छाई आपके मार्ग में बाधक बन सकते है इसलिए आप अपनी आखो को गुस्से से लाल कर सकते है लेकिन अन्नाय का मजबूत हाथो से सामना करना चाहिए|
19. यदि हम अपनी हजारो की दौलत गवा भी दे तो हमे मुस्कुराते रहना चाहिए और हमे सत्य और ईश्वर अपर विश्वास रखना चाहिए|
20. इन्सान जितना सम्मान करने योग्य है उतना ही सम्मान करना चाहिए उससे अधिक नही करना चाहिए क्योंकि उससे अधिक उसके नीचे गिरने का डर रहता है|
21. अब हमे उचनीच, अमीर-गरीब और जाति प्रथा के भेदभावो को समाप्त कर देना चाहिए
22. गरीबो की सेवा करना ईश्वर की सेवा है|
23. जबतक हमारा अंतिम ध्येय प्राप्त न हो तबतक हमे कष्ट सहने की शक्ति हमारे अंदर आती रहे यही हमारी सच्ची विजय है|
24. जो लोग तलवार चलाना जानने के बाद भी अपनी तलवार को म्यान में रखते है उसे ही सही अर्थो में सच्ची अहिंसा कहते है|
25. त्याग के सच्चे मूल्य का पता तभी चलता है जब हमे अपनी सबसे कीमती चीज को भी त्यागना पड़ता है जिसने अपने जीवन में कभी त्याग ही नही किया हो उसे त्याग के मूल्य का क्या पता |
26. हमारे देश में अनेक धर्म, अनेक भाषाए भी है लेकिन हमारी संस्कृति एक ही है|
27. मान सम्मान किसी के देने से नही बल्कि अपनी योग्यता के अनुसार ही मिलता है|
28. हर भारतीय का प्रथम कर्त्यव्य है की वह अपने देश की आजादी का अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और हमे इस आजादी की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है|
29. हमे यह भूल जाना चाहिए की हम सिख है, जाट है या राजपूत है, हमे तो बस इतना रखना चाहिए की हम सबसे पहले भारतीय है जिसके पास इस देश के प्रति अधिकार और कर्तव्य दोनों है|
30. यदि सत्य के मार्ग पर चलना है तो बुरे आचरण का त्याग भी आवश्यक हैक्योंकि बिना चरित्र निर्माण के राष्ट्र निर्माण नही हो सकता है|
31. सेवा धर्म बहुत ही कठिन है यह तो कठिन काँटों के सेज पर सोने जैसा है|
32. यदि आप सेवा करने वाले है तो आपको विनम्रता भी सीखनी चाहिए क्योंकि वर्दी पहन कर सिर्फ रौब नही बल्कि विनम्रता भी आनी चाहिए|
33. ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते है अक्सर उनके साथ मै हंसी मजाक करता हूँ|
सरदार वल्लभ भाई पटेल की कहानी जानकर शरीर में आतंविश्वास आ जाता है मुझे गर्व हैं की हमरे देश में ऐसे लोह पुरुष ने जन्म लिया आज सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन के बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा होगा तो देरी मत करना इसे जल्द से जल्द आगे बड़ों अपने मित्रों आदि में शेयर करदो.
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Really amazing biography bro !! सरदार वल्लभभाई पटेल हर भारतीय के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।