आज के इस लेख में हम आपको तेनालीराम की कहानी बतायेंगे| तेनालीराम की समझदारी उनकी वीरता के चर्चे हैं इस कहानी में| तो चलिए पड़ते हैं.
राजा कॄष्णदेव राय की नगरी|
एक बार की बात है जब राजा के दरबार में राजा सभी सदस्यों के साथ मंत्रियों के साथ अपने पद पर विराजमान थे तभी एक व्यक्ति उनके राजदरबार में आता है और अपना नाम नीलकेतु बताता है और कहता है की मै एक राहगिर हूँ राजा कॄष्णदेव राय से मिलने यहाँ आया हूँ.
तभी द्वारपालों ने राजा को नीलकेतु के आने की सूचना दी। राजा कृष्णदेव ने यह सुन कर नीलकेतु को मिलने की अनुमति दे डाली.
निलकेतु बिलकुल दुबला-पतला था उसे देख कर ऐसा लगता था की इसमें प्राण ही नहीं है। वह राजा के सामने आया और बोला :-
महाराज की जय हो, मेरा नाम नीलकेतु है मैं नीलदेश का निवासी हूँ और इस समय मैं विश्व भ्रमण की यात्रा पर निकला हूं। अन्य सभी जगहों का भ्रमण करने के बाद आपके दरबार तक में पहुंचा हूं। मैंने आपका नाम बहुत दूर दूर तक सुना है और आज आपको देखने का स्वभाग्य प्राप्त हुआ है मैं धन्य हो गया प्रभु|
राजा कृष्णदेव को ये सुन कर बेहद अच्छा लगा और राजा ने उसका स्वागत करते हुए उसे शाही मेहमान घोषित किया।
अब क्या हुआ की राजा ने उस मेहमान का पुरे दिल से स्वागत किया| राजा से निलकेतु ने इतना सम्मान पाने के बाद ख़ुशी में कहा की महाराज मुझे बहुत ख़ुशी हुई और महाराज! में उस जगह को जानता हूं, जहां पर खूब सुंदर-सुंदर परियां रहती हैं शायद वो आपका इन्तजार कर रही है। आप कहें तो मैं अपनी जादुई शक्ति से आपके लिए उन्हें यहां बुला सकता हूँ.
नीलकेतु की बात सुन राजा खुश हो गए और बोले:- इसके लिए मुझे क्या करना पडेगा ?
निलकेतु ने राजा की बात सुन कर कहा जी आपको रात में तालाब के पास आना है और नीलकेतु ने कहा कि उस जगह मैं परियों को नृत्य के लिए बुला भी सकता हूं। नीलकेतु की बात मान कर राजा रात में घोड़े पर बैठकर तालाब की ओर निकल गए.
तालाब के किनारे नील केतु पहले से ही पहुँचा हुआ था और जब राजा के तालाब के किनारे पहुंचने पर पुराने किले के पास नीलकेतु ने राजा कृष्णदेव का स्वागत किया.
निलकेतु ने राजा से बोला- महाराज! मैंने सारी तैयारी कर ली है। वह सब परियां किले के अंदर हैं। राजा को नीलकेतु पर बहुत भरोसा हो गया था.
राजा अपने घोड़े से उतर नीलकेतु के साथ अंदर जाने लगे। उसी समय राजा को कुछ शोर सुनाई दिया। पीछे मुड कर देखा तो राजा की सेना ने नीलकेतु को पकड़ कर बांध दिया था।
यह सब देख राजा ने पूछा- यह क्या हो रहा है ? इन्हें बंदी क्यों बना रहे हो ?
तभी किले के अंदर से तेनालीराम बाहर निकलते हुए बोले – महाराज! मैं आपको बताता हूँ|
तेनालीराम ने राजा को बताया – यह नीलकेतु एक रक्षा मंत्री है और महाराज…., किले के अंदर कुछ भी नहीं है। यह नीलकेतु आपकी हत्या करने की तैयारी करके बैठा था।
तेनालीराम ने ऐसे कई बार राजा की जान बचाई थी| राजा ने तेनालीराम को अपनी रक्षा के लिए धन्यवाद दिया और कहा- तेनालीराम यह बताओं, तुम्हें यह सब पता कैसे चला?
तेनालीराम ने राजा को सच्चाई बताते हुए कहा-
महाराज आपके दरबार में जब नीलकेतु आया था, तभी मैं समझ गया था। उसने आपको परियों का लालच दिया वो भी बिना किसी कीमत के ही इतनी बड़ी मेहरबानी कर रहा था| मुझे उस पर शक होने लगा.
फिर मैंने अपने साथियों से इसका पीछा करने को कहा था, जहां पर नीलकेतु आपको मारने की योजना बना रहा था। तेनालीराम की समझदारी पर राजा कृष्णदेव ने खुश होकर उन्हें तोहफा दिया और धन्यवाद किया.
मित्रों, इस कहानी से आपको क्या सिख मिली ?
इस कहानी से हमें ये सीख मिली की हमें कभी भी लालाच नहीं करना चाहिए और बिना पूरी जांच पड़ताल किये किसी अन्य पर विशवास नहीं करना चाहिए.
मै उम्मीद करता हूँ की आपको तेनालीराम की कहानी बहुत अच्छी लगी होगी और यदि सच में अच्छी लगी है तो कहानी को अपने मित्रों आदि में शेयर करना न भूलें| तेनालीराम की कहानी को आप फेसबुक, व्हाट्सएप्प, इन्स्टाग्राम, गूगल+ आदि पर शेयर कर सकते है| “धन्यवाद”
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Aapka yah post kafi achha lga aapne bahut hi achhi kahani ko share kiya hain dhnyabad.
Good post
Thank u for short story of tenali raman...it helped for my project too.