शीर्षक: शहीद भगत सिंह पर कविता
जय हिन्द देशभक्तों, आज हम आपके लिए शहीद भगत सिंह पर लिखी कविताएं का संग्रह लेकर आए है। भगत सिंह जी की कविता जो मन और दिल को उत्साह पूर्ण भर देती है और दिलों में देश के प्रति देश भक्ति जगा देती है।
शहीद भगत सिंह की कविता, भगत सिंह पर कविता का प्यारा सा संग्रह आपको यहां देखने को मिलेगा।
राष्ट्रीय गीत: Indian National Anthem jana Gana Mana
“इतिहास में गूंजता एक नाम है भगत सिंह शेर की दहाड़ सा जोश था जिसमे वे थे भगत सिंह छोटी सी उम्र में देश के लिए शहीद हुए जवान थे भगत सिंह आज भी जो रोंगटे खड़े करदे ऐसे विचारों के धनि थे भगत सिंह....”
डरे न कुछ भी जहां की चला चली से हम। गिरा के भागे न बम भी असेंबली से हम। उड़ाए फिरता था हमको खयाले-मुस्तकबिल, कि बैठ सकते न थे दिल की बेकली से हम। हम इंकलाब की कुरबानगह पे चढ़ते हैं, कि प्यार करते हैं ऐसे महाबली से हम। जो जी में आए तेरे, शौक से सुनाए जा, कि तैश खाते नहीं हैं कटी-जली से हम। न हो तू चीं-ब-जबीं, तिवरियों पे डाल न बल, चले-चले ओ सितमगर, तेरी गली से हम।
भारत के लिये तू हुआ बलिदान भगत सिंह । था तुझको मुल्को-कौम का अभिमान भगत सिंह ।। वह दर्द तेरे दिल में वतन का समा गया । जिसके लिये तू हो गया कुर्बान भगत सिंह ।। वह कौल तेरा और दिली आरजू तेरी । है हिन्द के हर कूचे में एलान भगत सिंह ।| फांसी पै चढ़के तूने जहां को दिखा दिया । हम क्यों न बने तेरे कदरदान भगत सिंह ।। प्यारा न हो क्यों मादरे-भारत के दुलारे । था जानो-जिगर और मेरी शान भगत सिंह ।। हरएक ने देखा तुझे हैरत की नजर से । हर दिल में तेरा हो गया स्थान भगत सिंह ।। भूलेगा कयामत में भी हरगिज न ए 'किशोर' । माता को दिया सौंप दिलोजान भगत सिंह ।। [ ब्रिटिश राज के प्रतिबंधित साहित्य से ]
मेरा मुल्क मेरा देश मेरा ये वतन शांति का उन्नति का प्यार का चमन इसके वास्ते सब निछावर है….. मेरा तन… मेरा मन…… ऐ वतन, ऐ वतन, ऐ वतन जाने मन जाने मन जाने मन...
बात सुनो भाई भगत सिंह गुंडे चोर इंडिया के… बात सुनो भाई भगत सिंह गुंडे चोर इंडिया के… भारत माँ को लुटते है जनता के सपने टूटते हैं, गरीब भूके मरते है अमीरों के घर भरते है…. लड़किया सड़े तेजाब मै जवानी रुले शराब में… आज देश आजाद है आज देश आजाद है आपकी क़ुरबानी पर नाज है. पर क्या करे ऐसी आजादी का हर दिन दिखती बर्बादी का…. यह हे हाल देश का सफ़ेद कपड़ो में गुंडों के भेस का. किसी को कोई टेंशन नही बूढों को मिलती पेंशन नही.. गाय का खाते चारा यह, हमारा देश है महान का लगाते नारा यह… किस चीज का इनको नाज है, किस चीज का हमे नाज है… ऐसा क्या है जो हमारे देश में महान हैं, ऐसा क्या है जो हमारे देश में महान हैं……
आपके लिए: भगत सिंह का जीवन परिचय और उनकी मृत्यु का कारण
भगत सिंह जी के बारे में पूरा विश्व जानता है, देश के लिए मर मिटने वाले शहीद भगत सिंह जी के लिए आज पूरा देश उनके आगे नतमस्तक करता है।
भगत सिंह जी भारत की आजादी के लिए अपने घर, मित्र रिश्तेदार आदि को छोड़ कर भारत माता कि आजादी का बहुमूल्य हिस्सा बन चुके थे जिसकी वजह से भगत सिंह जी को पूरा भारत शहीद भगत सिंह बोलता है।
शहीद भगत सिंह जी ने हमेशा से ही बचपन से संघर्षों को देखा और बचपन से उन्होंने देश प्रेम और सबके हित में सोचने के विचार को अपने मन में जगह दी, उनके खून की एक-एक बूंद उनसे यही बोलती थी “इंकलाब जिंदाबाद”।
उनका मानना था कि यदि आज हम आवाज नहीं उठाएंगे तो कल यही लोग हमारा सर कुचल देंगे जैसे कि ब्रिटीशियों को लेकर वो हमेशा से यही देखते आए कि ब्रिटिशों ने किस तरह भारत को अपना गुलाम बना लिया और कर के बहाने से किस तरह किसानों को तंग किया और यही कारण था जिससे भगत सिंह जी ने आवाज उठाई और हमारे भारत कि आजादी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भगत सिंह जी के लिए अपने विचारों को कविता के माध्यम से आप सभी के लिए भगत सिंह कविता निम्नलिखित है।
भगत सिंह जी कि कविताओं को सभी प्रकार के छोटे बड़े बच्चे अपने प्रयोग में ला सकते है। भगत सिंह जी कि कविता छोटे बच्चों और कॉलेज के समारोह आदि में प्रयोग करने वाली कविताओं का लेख निम्नलिखित है।
प्रेरित करने वाले क्रांतिकारी वचन: शहीद भगत सिंह के विचार
तेईस मार्च को मर्द-ए-मैदां चल दिया सरदार, तेईस मार्च को । मान कर फ़ांसी गले का हार, तेईस मार्च को। आसमां ने एक तूफ़ान वरपा कर दिया, जेल की बनी ख़ूनी दीवार, तेईस मार्च को। शाम का था वक्त कातिल ने चराग़ गुल कर दिया, उफ़ ! सितम, अफ़सोस, हा ! दीदार, तेईस मार्च को। तालिब-ए-दीदार आए आख़री दीदार को, हो सकी राज़ी न पर सरकार, तेईस मार्च को। बस, ज़बां ख़ामोश, इरादा कहने का कुछ भी न कर, ले हाथ में कातिल खड़ा तलवार, तेईस मार्च को। ऐ कलम ! तू कुछ भी न लिख सर से कलम हो जाएगी, गर शहीदों का लिखा इज़हार, तेईस मार्च को। जब ख़ुदा पूछेगा फिर जल्लाद क्या देगा जवाब, क्या ग़ज़ब किया है तूने सरकार, तेईस मार्च को। कीनवर कातिल ने हाय ! अपने दिल को कर ली थी, ख़ून से तो रंग ही ली तलवार, तेईस मार्च को। हंसते हंसते जान देते देख कर 'कुन्दन' इनहें, पस्त हिम्मत हो गई सरकार, तेईस मार्च को। -कुन्दन (मार्च (आखिरी हफ़्ता) १९३१)
एक वो जमाना था जब लोग साथ चला करते थे, मरने मिटने कि बातें किया करते थे और एक समय है लोग खिड़की से झाँक कर देखते है कि हो क्या रहा है।
अगर भगत सिंह और दत्त मर गए सख़तियों से बाज़ आ ओ आकिमे बेदादगर, दर्दे-दिल इस तरह दर्दे-ला-दवा हो जाएगा । बाएसे-नाज़े-वतन हैं दत्त, भगत सिंह और दास, इनके दम से नखले-आज़ादी हरा हो जाएगा । तू नहीं सुनता अगर फर्याद मज़लूमा, न सुन, मत समझ ये भी बहरा ख़ुदा हो जाएगा । जोम है कि तेरा कुछ नहीं सकते बिगाड़, जेल में गर मर भी गए तो क्या हो जाएगा । याद रख महंगी पड़ेगी इनकी कुर्बानी तुझे, सर ज़मीने-हिन्द में महशर बपा हो जाएगा । जां-ब-हक हो जाएंगे शिद्दत से भूख-ओ-प्यास की, ओ सितमगर जेलख़ाना कर्बला हो जाएगा । ख़ाक में मिल जाएगा इस बात से तेरा वकार, और सर अकवा में नीचा तेरा हो जाएगा। -अज्ञात १८ अगस्त १९२९, बन्दे मात्रिम (उर्दू पत्र)-लाहौर
ख्वाहिशों कि चाह में लोग अपनों को भुलाएं बैठे है वो दौर कुछ और था जब लोग एक दूसरे के लिए मरा करते थे।
बम चख़ है अपनी शाहे रईअत पनाह से बम चख़ है अपनी शाहे रईयत पनाह से इतनी सी बात पर कि 'उधर कल इधर है आज' । उनकी तरफ़ से दार-ओ-रसन, है इधर से बम भारत में यह कशाकशे बाहम दिगर है आज । इस मुल्क में नहीं कोई रहरौ मगर हर एक रहज़न बशाने राहबरी राहबर है आज । उनकी उधर ज़बींने-हकूमत पे है शिकन अंजाम से निडर जिसे देखो इधर है आज । -अल्लामा 'ताजवर' नजीबाबादी २ मार्च १९३०-वीर भारत (लाहौर से छपने वाला रोज़ाना अखबार) (रईयत पनाह=जनता को शरण देने वाला, दार-ओ-रसन=फांसी का फंदा, कशाकशे- बाहम दिगर=आपसी खींचतान, रहरौ=रास्ते का साथी, रहज़न=लुटेरा, ज़बींने=माथा, शिकन=बल)
जिंदगी के चाह में दूनिया खड़ी है, वो कौन थे फिर जो दुनिया के लिए मर मिटे।
ज़िंदा-बाश ऐ इंक़लाब ऐ शोला-ए-फ़ानूस-ए-हिन्द ज़िंदा-बाश ऐ इंक़लाब ऐ शोला-ए-फ़ानूस-ए-हिन्द गर्मियाँ जिस की फ़रोग़-ए-मंक़ल-ए-जाँ हो गईं बस्तियों पर छा रही थीं मौत की ख़ामोशियाँ तू ने सूर अपना जो फूँका महशरिस्ताँ हो गईं जितनी बूँदें थीं शहीदान-ए-वतन के ख़ून की क़स्र-आज़ादी की आराइश का सामाँ हो गईं मर्हबा ऐ नौ-गिरफ़्तारान-ए-बेदाद-ए-फ़रंग जिन की ज़ंजीरें ख़रोश-अफ़ज़ा-ए-ज़िंदाँ हो गईं ज़िंदगी उन की है दीन उन का है दुनिया उन की है जिन की जानें क़ौम की इज़्ज़त पे क़ुर्बां हो गईं -ज़फ़र अली ख़ाँ-लाहौर २ मार्च १९३०-वीर भारत (लाहौर से छपने वाला रोज़ाना अखबार)
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब के सब है भाई भाई…
मरते मरते दाग़ दुश्मन का किला जाएँगे, मरते मरते । ज़िन्दा दिल सब को बना जाएंगे, मरते मरते । हम मरेंगे भी तो दुनिया में ज़िन्दगी के लिये, सब को मर मिटना सिखा जाएंगे, मरते मरते । सर भगत सिंह का जुदा हो गया तो क्या हुया, कौम के दिल को मिला जाएंगे, मरते मरते । खंजर -ए -ज़ुल्म गला काट दे परवाह नहीं, दुक्ख ग़ैरों का मिटा जाएंगे, मरते मरते । क्या जलाएगा तू कमज़ोर जलाने वाले, आह से तुझको जला जाएंगे, मरते मरते । ये न समझो कि भगत फ़ांसी पे लटकाया गया, सैंकड़ों भगत बना जाएंगे, मरते मरते । -अज्ञात (मार्च (आखिरी हफ़्ता) १९३१)
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान आज लग रहा कैसा जी को कैसी आज घुटन है दिल बैठा सा जाता है, हर साँस आज उन्मन है बुझे बुझे मन पर ये कैसी बोझिलता भारी है क्या वीरों की आज कूच करने की तैयारी है? हाँ सचमुच ही तैयारी यह, आज कूच की बेला माँ के तीन लाल जाएँगे, भगत न एक अकेला मातृभूमि पर अर्पित होंगे, तीन फूल ये पावन, यह उनका त्योहार सुहावन, यह दिन उन्हें सुहावन। फाँसी की कोठरी बनी अब इन्हें रंगशाला है झूम झूम सहगान हो रहा, मन क्या मतवाला है। भगत गा रहा आज चले हम पहन वसंती चोला जिसे पहन कर वीर शिवा ने माँ का बंधन खोला। झन झन झन बज रहीं बेड़ियाँ, ताल दे रहीं स्वर में झूम रहे सुखदेव राजगुरु भी हैं आज लहर में। नाच नाच उठते ऊपर दोनों हाथ उठाकर, स्वर में ताल मिलाते, पैरों की बेड़ी खनकाकर। पुनः वही आलाप, रंगें हम आज वसंती चोला जिसे पहन राणा प्रताप वीरों की वाणी बोला। वही वसंती चोला हम भी आज खुशी से पहने, लपटें बन जातीं जिसके हित भारत की माँ बहनें। उसी रंग में अपने मन को रँग रँग कर हम झूमें, हम परवाने बलिदानों की अमर शिखाएँ चूमें। हमें वसंती चोला माँ तू स्वयं आज पहना दे, तू अपने हाथों से हमको रण के लिए सजा दे। सचमुच ही आ गया निमंत्रण लो इनको यह रण का, बलिदानों का पुण्य पर्व यह बन त्योहार मरण का। जल के तीन पात्र सम्मुख रख, यम का प्रतिनिधि बोला, स्नान करो, पावन कर लो तुम तीनो अपना चोला। झूम उठे यह सुनकर तीनो ही अल्हण मर्दाने, लगे गूँजने और तौव्र हो, उनके मस्त तराने। लगी लहरने कारागृह में इंक्लाव की धारा, जिसने भी स्वर सुना वही प्रतिउत्तर में हुंकारा। खूब उछाला एक दूसरे पर तीनों ने पानी, होली का हुड़दंग बन गई उनकी मस्त जवानी। गले लगाया एक दूसरे को बाँहों में कस कर, भावों के सब बाँढ़ तोड़ कर भेंटे वीर परस्पर। मृत्यु मंच की ओर बढ़ चले अब तीनो अलबेले, प्रश्न जटिल था कौन मृत्यु से सबसे पहले खेले। बोल उठे सुखदेव, शहादत पहले मेरा हक है, वय में मैं ही बड़ा सभी से, नहीं तनिक भी शक है। तर्क राजगुरु का था, सबसे छोटा हूँ मैं भाई, छोटों की अभिलषा पहले पूरी होती आई। एक और भी कारण, यदि पहले फाँसी पाऊँगा, बिना बिलम्ब किए मैं सीधा स्वर्ग धाम जाऊँगा। बढ़िया फ्लैट वहाँ आरक्षित कर तैयार मिलूँगा, आप लोग जब पहुँचेंगे, सैल्यूट वहाँ मारूँगा। पहले ही मैं ख्याति आप लोगों की फैलाऊँगा, स्वर्गवासियों से परिचय मैं बढ, चढ़ करवाऊँगा। तर्क बहुत बढ़िया था उसका, बढ़िया उसकी मस्ती, अधिकारी थे चकित देख कर बलिदानी की हस्ती। भगत सिंह के नौकर का था अभिनय खूब निभाया, स्वर्ग पहुँच कर उसी काम को उसका मन ललचाया। भगत सिंह ने समझाया यह न्याय नीति कहती है, जब दो झगड़ें, बात तीसरे की तब बन रहती है। जो मध्यस्त, बात उसकी ही दोनों पक्ष निभाते, इसीलिए पहले मैं झूलूं, न्याय नीति के नाते। यह घोटाला देख चकित थे, न्याय नीति अधिकारी, होड़ा होड़ी और मौत की, ये कैसे अवतारी। मौत सिद्ध बन गई, झगड़ते हैं ये जिसको पाने, कहीं किसी ने देखे हैं क्या इन जैसे दीवाने? मौत, नाम सुनते ही जिसका, लोग काँप जाते हैं, उसको पाने झगड़ रहे ये, कैसे मदमाते हें। भय इनसे भयभीत, अरे यह कैसी अल्हण मस्ती, वन्दनीय है सचमुच ही इन दीवानो की हस्ती। मिला शासनादेश, बताओ अन्तिम अभिलाषाएँ, उत्तर मिला, मुक्ति कुछ क्षण को हम बंधन से पाएँ। मुक्ति मिली हथकड़ियों से अब प्रलय वीर हुंकारे, फूट पड़े उनके कंठों से इन्क्लाब के नारे । इन्क्लाब हो अमर हमारा, इन्क्लाब की जय हो, इस साम्राज्यवाद का भारत की धरती से क्षय हो। हँसती गाती आजादी का नया सवेरा आए, विजय केतु अपनी धरती पर अपना ही लहराए। और इस तरह नारों के स्वर में वे तीनों डूबे, बने प्रेरणा जग को, उनके बलिदानी मंसूबे। भारत माँ के तीन सुकोमल फूल हुए न्योछावर, हँसते हँसते झूल गए थे फाँसी के फंदों पर। हुए मातृवेदी पर अर्पित तीन सूरमा हँस कर, विदा हो गए तीन वीर, दे यश की अमर धरोहर। अमर धरोहर यह, हम अपने प्राणों से दुलराएँ, सिंच रक्त से हम आजादी का उपवन महकाएँ। जलती रहे सभी के उर में यह बलिदान कहानी, तेज धार पर रहे सदा अपने पौरुष का पानी। जिस धरती बेटे हम, सब काम उसी के आएँ, जीवन देकर हम धरती पर, जन मंगल बरसाएँ। (क्रान्ति गंगा-श्रीकृष्ण सरल)
मिटने वालों की वफा का यह सबक याद रहे मिटने वालों की वफा का यह सबक याद रहे, बेड़ियां पांवों में हों और दिल आजाद रहे। एक साइर भी इनाइत न हो आजाद रहे, साकिया, जाते हैं महफ़िल तेरी आबाद रहे। आप का हम से हुया था कभी समाने वफ़ा, जालम मगर वो हुया था भी घड़ी याद रहे। बाग में ले के जनम हम ने असीरी झेली, हम से अच्छे रहे जंगल में जो आजाद रहे। मुझ को मिल जाए रुकने के लिए साख मेरी, कौन कहता है कि गुलशन में न सय्याद रहे। हुकम माली का है यह फूल न खिलने पाएं, चुप रहे बाग में कोयल अगर आजाद रहे। बागवान दिल से वतन को यह दुआ देता है, मैं रहूं या ना रहूं यह चमन आबाद रहे। (बृज नारायण चकबस्त)
मोख तेईस मार्च थी था इकतीस का साल, मिले इन्हें फांसी सुजन किया गया बदहाल। था ठीक शाम का सात बजा, फन्दा था भगत सिंह के डाला, और झूला फांसी का झूला, सरदार भगत सिंह मतवाला। मरने से पहले विदा ली, हमदम, हमराहों से उसने, "डाऊन डाऊन विद यूनियन जैक" की सदा लगाई उसने। बदले में सब कैदियों ने, "भगत सिंह जिन्दाबाद" कहा, भारत माता का जयघोष किया, 'इन्कलाब जिन्दाबाद' कहा। मोख तेईस मार्च थी था इकतीस का साल, मिले इन्हें फांसी सुजन किया गया बदहाल। (मोख=तारीख़) (पंडित हर्ष दत्त पांडे)
भगत सिंह की याद करुणामय मां की छाती पर किया बंधु को आह हलाल, बधिक खड़ा है देखा कैसा रंगे हुए दोनों कर लाल। मां रोती है, मैं रोता हूं, जगती का रोता हर रोम, खिल खिल हंसता क्रूर कसाई, प्रतिध्वनित होता है व्योम। मुंह आंखों से फिरता लहू, और धधकती, छब की आंच, रस्सी, तखता, गड़ा घिरनी, सभी रहे आंखों में नाच। कौन ? कहां वे गए ? इसे अब कोई बताता है, नहीं भूलता हाय ! हाय रे ! भगत सिंह याद आता है। (-अज्ञात)
खून का आंसू सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु, आजादी के दीवाने थे, हंस-हंस के झूले फांसी पर भारत मां के मस्ताने थे । वह मेरे नहीं हैं जिन्दा हैं, वह अमर शहीद कहाएंगे, वह प्यारे वतन पै निसार हुए, वह वीरों में मरदाने थे । यह मरजी उस मालिक की थी, सब उसने खेल दिखाए हैं, था लिखा उन्हें कुर्बान होना, फांसी के मुफ्त बहाने थे । ब्रिटिश ने कहा माफी मांगो, शायद जिंदगानी हो जाए, हंस हंस के सब ने जवाब दिया, नहीं हशर में दाग लगाने थे। दुख दर्द से तूने पाला था, कुछ काम ना हम आए तेरे, आजाद ना मां कर तुम को चले, मालिक के यई मनमाने थे। सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु, आजादी के दीवाने थे हंस-हंस के झूले फांसी पर भारत मां के मस्ताने थे । -(कमल)
मर्दाना भगत सिंह सरताज नौजवानों का मर्दाना भगत सिंह, आजादी का दीवाना था मर्दाना भगत सिंह । होती भी मीटिंग असेंबली में जिस दम फेंका बम, बम केस में पकड़ा गया मस्ताना भगत सिंह । राजगुरु सुखदेव दोनों मित्रों को लेकर साथ, फांसी चढ़ स्वर्ग सिधारा मस्ताना भगत सिंह । (श्रीयुत प्रताप सव्तंतर)
भारत माता का सपूत आजादी का दीवाना था हंस कर झूल गया फांसी पर भगत सिंह मस्ताना था।
भारत माता का सपूत आजादी का दीवाना था- हंस कर झूल गया फांसी पर भगतसिंह मस्ताना था- नौ जवान वह पंजाबी गजब शेर का दिल वाला था- देश, प्रेम का रस पीकर वह बना हुआ था मतवाला- दिन में चैन, रात में नींद कभी उसे नही आती थी... ग्राम-छुलकारी, पोस्ट-पसला, जिला-अनूपपुर (मध्यप्रदेश) -तरंग, कविता, भागवती केवट
प्यारा भगत सिंह हुआ देश का तू दुलारा, भगत सिंह । झुके सर तेरे आगे हमारा, भगत सिंह । नौजवानों के हेतु हुए आप गांधी, रहे राष्ट्र के एक गुवारा, भगत सिंह । किया काम बेशक है हिंसा का तुम ने, यही दोष है इक तुम्हारा, भगत सिंह । मगर देश हित के लिए जान दे दी, बढ़ा शान तेरा हमारा, भगत सिंह । तेरी देशभक्ति पे सब हैं निछावर, "अभय" तेरा साहस है न्यारा, भगत सिंह । हुआ देश का तू दुलारा, भगत सिंह झुके सर तेरे आगे हमारा, भगत सिंह । -(अभय)
जल्लाद से लगा कर फांसी ही क्या मान होगा, रहे याद, तू भी सदा परेशान होगा । अगर जान मांगी तो क्या तुमने मांगा, मेरी जान से तुझ को नुकसान होगा । लगा ले तू फांसी करो शाद दिल निज, यह तेरे ही रोने का सामान होगा । नहीं होगा इस से अमन तू याद रखना, तेरा तंग हर दम यहां औसान होगा । हम आते हैं लेकर जन्म फिर दुबारा, वही संग में बम का सब सामान होगा । दलेंगे हम छाती पै फिर मूंग तेरी, उसी बम का हर जगह पे व्याख्यान होगा । हमें आशा पूरी नजर आ रही है, कि कुछ दिन का तू और महमान होगा । चढ़ा दे तू फांसी समझ हम को कांटा, स्वर्ग का हमें यह तो ब्यान होगा । सफल हुआ उसका जन्म लेना जहाँ में, जो अपने वतन पे यूं कुर्बान होगा । अमर यहाँ पे कब तक तुम रहोगे, आखिर तो प्राणों का अवसान होगा । सुनो आज भारत के तुम नौजवानो, मेरे बाद तुम्हारा भी इम्तिहान होगा । यह व्यर्य नहीं जाएगा खून हमारा, 'सव्तंतर' इसी विधि से हिन्दुस्तान होगा । (श्रीयुत प्रताप सव्तंतर)
तीन शहीद सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु, ये तीनों देश दुलारे हैं, फांसी पै लटक कर जान जो दी, जी-जान से हम को प्यारे हैं। यह मौत नहीं, यह जीवन है, यह मरना नहीं, यह जीना है, नामूसे-वतन पे शहीद हुए, नामूसे-वतन को प्यारे हैं । वह अपनी जान पै खेले हैं, बेलाग है उनकी कुर्बानी, ईसार के चर्खे-बाला पर, रोशन ये चमकते तारे हैं । गांधी ने सुनी जिस वक्त खबर, अफसोस किया औ फरमाया, 'मेरी तहरीक के हक में उनके खून के कतरे शरारे हैं'। जब उनकी जवानी का नक्शा, आंखों के आगे आता है, मगमूम हमातन रंजोगम से हो जाते हम सारे हैं । हम अपने शहीदों की, क्यों याद दिलों से दूर करें, क्या और किसी ने भुलाए हैं, क्या और किसी ने बिसारे हैं? सुखदेव, भगत सिंह, राजगुरु, ये तीनों देश दुलारे हैं, फांसी पै लटक कर जान जो दी, जी-जान से हम को प्यारे हैं।
खून के छींटे ये छींटे खून की उस दामन-ए-कातिल कहानी है, शहीदान-ए-वतन की कुछ निशानी देखते जाओ । अभी लाखों ही बैठे बुझाने प्यास अपनी, खत्म हो जाएगा खंजर का पानी, देखते जाओ । अरे साहब जिवह करने से क्यों मुंह फेर लेते हो, मेरी गर्दन पे खंजर की रवानी, देखते जाओ । करेगा खून-ए-नाहक कब तलक मजलूम का जालिम, रहेगी कब तलक ये हुकुमरानी, देखते जाओ । हमारी आह से आतिश झटक उठेगी दुनिया में, अजब गर्दश है रंगत आसमानी, देखते जाओ । ये छींटे खून की उस दामन-ए-कातिल कहानी है, शहीदान-ए-वतन की कुछ निशानी देखते जाओ ।
फांसी के शहीद ये आह भगत सिंह की खाली ना जाएगी, फांसी है शेरे-नर की कुछ रंग लाएगी । शिकवा नहीं है गवर्नमेंट से, तकदीर हमारी, देखेंगे किस्मत कब तक यह पलटा ना खाएगी । भाई बहन को उसने दिलासा दिया था खूब, हम आजादी पर मिटते हैं रूह फिर लौट आएगी । भाई हमारे मरने का मातम ना करना, कहानी मेरी भारत में कुछ कर दिखाएगी ।
ऐलान फांसी पे वीरों का चढ़ना, कुछ और ही रंग लाएगा । इस तरह मरने से हिन्द पे गम का बादल छाएगा । हकूमते बरतानिया ! अब जुल्म की हद हो चुकी, ऐलां ! तेरा जुल्म अब हम से सहा नहीं जाएगा । प्यारे भगत सिंह वीर को हम से जुदा जो है किया, इसका अब अंजाम तू थोड़े दिनों में पाएगा । ए नौजवानो ! तैयार हो जायो मरने के लिए, देश की वेदी पर अब से सर चढ़ाया जाएगा । (इस रचना पर काम जारी है)
डरे न कुछ भी जहां की चला चली से हम डरे न कुछ भी जहां की चला चली से हम, गिरा के भागे न बम भी असेंबली से हम। उड़ाए फिरता था हमको खयाले-मुस्तकबिल, कि बैठ सकते न थे दिल की बेकली से हम। हम इंकलाब की कुरबानगह पे चढ़ते हैं, कि प्यार करते हैं ऐसे महाबली से हम। जो जी में आए तेरे, शौक से सुनाए जा, कि तैश खाते नहीं हैं कटी-जली से हम। न हो तू चीं-ब-जबीं, तिवरियों पे डाल न बल, चले-चले ओ सितमगर, तेरी गली से हम। -अज्ञात १५ जून १९२९, बन्दे मात्रिम (उर्दू पत्र)-लाहौर (खयाले-मुस्तकबिल=भविष्य का विचार, कुरबानगह=बलीवेदी, चीं-ब-जबीं=क्रुद्ध)
हिन्दोसतान आज़ाद होगा अब तो हिन्दोसतां हमारा, बेदार हो रहा है हर नौजवां हमारा। आज़ाद होगा होगा अब तो हिन्दोसतां हमारा, है ख़ैरख़वाहे-भारत खुरदो-कलां हमारा। वे सख़तियां कफस की, बे आबो-दाना मरना, कैदी का फिर भी कहना, हिन्दोसतां हमारा। इक कतले-सांडरस पर, इतनी सज़ाएं उनको, रोता है लाजपत को, हिन्दोसतां हमारा। बीड़ा उठा लिया है, आज़ादियों का हमने, जन्नत निशां बनेगा हिन्दोसतां हमारा। सोज़े-सुख़न से अपने, मजनूं हमें बना दे, बच्चों की हो ज़बां पर, हिन्दोसतां हमारा। इक बार फिर से नग़मा 'अनवर' हमें सुना दे, "हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसतां हमारा।" -अनवर ७ मार्च १९३०-थड़थल (लाहौर से प्रकाशित तीन रोज़ा पत्र)
*हंसते हंसते फांसी को गले लगाया* मोमबत्तियां बुझ गयी चिराग तले अँधेरा छाया था फांसी के फंदे पर जब तीनों वीरों को झुलाया था सुखदेव,भगत सिंह,राजगुरु के मन को कुछ और न भाया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। तीनों के साथ आज एक बड़ा सा काफिला था भारतवर्ष में लगा जैसे मेला कोई रंगीला था लेकर जन्म इस पावन धरा पर उन्होंने अपना फर्ज निभाया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। मौत का उनको डर न था सीने में जोश जोशीला था परवाह नहीं थी अपने प्राण की बसंती रंग का पहना चोला था, छोड़ मोह माया इस जग की अपनों को भी भुलाया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। इंकलाब का नारा लिए विदा लेने की ठानी थी लटक गए फांसी पर किन्तु मुख से उफ्फ तक न निकाली थी, देश भक्ति को देख तुम्हारी सबने अश्रुधार बहाया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। तुम छोड़ गए इस दुनिया को दिखाकर आजादी का सपना सपना हुआ था सच लेकिन हमने खो दिया बहुत कुछ अपना, गोरों ने अपनी संस्कृति को हमारे सभ्याचार में बसाया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। टुकड़े टुकड़े कर गोरों ने भारत माँ का सीना चीरा था एकसूत्र करने का हम पर बहुत ही बड़ा बीड़ा था, हिन्दू मुस्लिम के झगड़ों ने इंसानियत के रिश्ते को भरमाया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। आज़ादी के बाद तो देखो कैसे यह लगी बीमारी थी हिन्दू मुस्लिम के चक्कर में लड़ना सबकी लाचारी थी, कुछ को हिंदुस्तान मिला तो कुछ ने पाकिस्तान बनाया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। जातिवाद का खेल में बंट गया समाज भी अपना ये तो वो न था जो देखा था तुमने सपना, सत्ता का खेल निराला आया परिवार वाद भी उसमे गहरा छाया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। गाँधी नेहरू और जिन्ना ने फिर राजनितिक माहौल बनाया था देश की सत्ता की खातिर अखंडता को दांव पर लगाया था, बस अपनी बात मनवाने को देश को टुकड़ों में बंटवाया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। सरहद के उस बंटवारे का आज तलक असर दिखता है भारत पाक की सीमाओं पर सिपाही मौत से लड़ता है, तुमने जो सोचा था वैसा कोई ये देश बना न पाया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। इक वक़्त के खाने के लिए कोई गरीब दिन-रात तरसता है कुछ ने रेशम की पोशाक वालों का गुस्सा मजलूमों पर बरसता है, कहीं जात-पात का शोर तो कहीं आरक्षण ने सबको लड़ाया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। जैसा न तुमने सोचा था वैसी है अपनी आज़ादी देश के लोग ही कर रहे हैं आज इस देश की बर्बादी, जब-जब सोचा तुम्हारे बारे में मुझको तो रोना आया था हँसते हँसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था। स्वरचित हरीश चमोली टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड)
भगत सिंह के अनमोल विचार और उनके बलिदान के लिए पूरा भारत देश उनका आभारी है और हर हिन्दुस्तानी उनको याद करता है। उनके दिए गए बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता।
भगत सिंह जी के विचार सभी और शहीद भगत सिंह पर कविता सभी भारतीय लोगों को पता होना चाहिए चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम, सिख, ईसाई उनके विचार सभी लोगों को मालूम होने चाहिए।
आप देश के लिये कुछ कर सकते हैं, शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय और विचार शेयर करके देश भक्ति कर सकते है।
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Meri jaan India Jay bharat maa
nice
meri jan hai india