शहीद भगत सिंह जी के बारे में कुछ ऐसी बातें जो किसी ने कभी नहीं सुनी है। भगत सिंह का जीवन परिचय में अगर कुछ बात रहती है तो पूछिए हम जवाब देने का पूरा प्रयास करेंगे।
नाम | शहीद भगत सिंह |
जन्म | 28 सितम्बर 1907 |
जन्मस्थल | गाँव बंगा, जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में) |
मृत्यु | 23 मार्च 1931 |
मृत्युस्थल | लाहौर जेल, पंजाब (अब पाकिस्तान में) |
आन्दोलन | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
पिता | सरदार किशन सिंह सिन्धु |
माता | श्रीमती विद्यावती जी |
भाई-बहन |
रणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर, शकुंतला कौर
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चाचा | श्री अजित सिंह जी |
प्रमुख संगठन |
नौजवान भारत सभा, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन
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भागत सिंह जी के बारे में बात करे तो भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है।
सरदार भगत सिंह का नाम अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप में लिया जाता है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ है जो पंजाब, भारत में है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह सिन्धु और माता का नाम श्रीमती विद्यावती जी था।
भारत के सबसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भगत सिंह भारत देश की महान ताकत है जिन्होंने हमें अपने देश पर मर मिटने की ताकत दी है और देश प्रेम क्या है ये बताया है।
भगत सिंह जी को कभी भुलाया नहीं जा सकता उनके द्वारा किये गए त्याग को कोई माप नहीं सकता। उन्होंने अपनी मात्र 23 साल की उम्र में ही अपने देश के लिए अपने प्राण व अपना परिवार व अपनी युवावस्था की खुशियाँ न्योछावर कर दी ताकि आज हम लोग चैन से जी सके।
भारत की आजादी की लड़ाई के समय, भगत सिंह का जीवन परिचय सिख परिवार में जन्मे और सिख समुदाय का सीर गर्व से उंचा कर दिया।
भगत सिंह जी ने बचपन से ही अंग्रेजों के अत्याचार देखे थे, और उसी अत्याचार को देखते हुए उन्होने हम भारतीय लोगों के लिए इतना कर दिया की आज उनका नाम सुनहरे पन्नों में है। उनका कहना था कि देश के जवान देश के लिए कुछ भी कर सकते है, देश का हुलिया बदल सकते है और देश को आजाद भी करा सकते है। भगत जी का जीवन ही संघर्ष से परिपूर्ण था।
भगत सिंह जी सिख थे और भगत सिंह जी के जन्म के समय उनके पिता सरदार किशन सिंह जी जेल में थे, भगत जी के घर का माहौल देश प्रेमी था, उनके चाचा जी श्री अजित सिंह जी स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी। उनके साथ सैयद हैदर रजा भी थे।
भगत जी के चाचा जी के नाम 22 केस दर्ज थे, जिस कारण उन्हें ईरान जाना पड़ा क्योंकि वहाँ वे बचे रहते अन्यथा पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती। भगत जी का दाखिला दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में कराया था।
सन् 1919 में जब जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह का खून खोल उठा और महात्मा गांधी जी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन का उन्होंने पूरा साथ दिया। भगत सिंह जी अंग्रेजों को कभी भी ललकार दिया करते थे जैसे कि मानो वे अंग्रेजो को कभी भी लात मार कर भगा देते।
भगत जी ने महात्मा गांधी जी के कहने पर ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे, भगत जी की ये नटखट हरकतें उनकी याद दिलाती है और इन्हें सुन कर, पढ़कर आंखों में आंसू आ जाते है।
चौरी चौरा हुई हिंसात्मक गतिविधि पर गांधी जी को मजबूरन असहयोग आन्दोलन बंद करना पड़ा, मगर भगत जी को ये बात हजम नहीं हुई उनका गुस्सा और भी उपर उठ गया और गांधी जी का साथ छोड़ कर उन्होंने दूसरी पार्टी पकड़ ली।
लाहौर के नेशनल कॉलेज से BA कर रहे थे और उनकी मुलाकात सुखदेव, भगवती चरण और कुछ सेनानियों से हुई और आजादी की लड़ाई और भी तेज हो गयी, और फिर क्या था उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और आजादी के लिए लड़ाई में कूद पड़े।
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भगत सिंह जी की शादी के लिए उनका परिवार सोच ही रहा था की भगत जी ने शादी के लिए मना कर दिया और कहा “अगर आजादी से पहले मैं शादी करूँ तो मेरी दुल्हन मौत होगी.”
भगत सिंह जीवनी: भगत जी कॉलेज में बहुत से नाटक आदि में भाग लिया करते थे वे बहुत अच्छे एक्टर भी थे, उनके नाटक में केवल देशभक्ति शामिल थी उन नाटकों के चलते वे हमेशा नव युवकों को देश भक्ति के लिए प्रेरित किया करते थे और अंग्रेजों का मजाक भी बनाते थे और उन्हें नीचा दिखाते थे। क्योंकि अंग्रेजों का इरादा गलत था।
भगत सिंह जी मस्तमौला इंसान थे और उन्हें लेक लिखने का बहुत शौक था। कॉलेज में उन्हें निबंध में भी कई पुरस्कार मिले थे।
भगत सिंह जी के परिवार के लोग जब हार गए की अब उन्हें भगत सिंह जी की शादी के लिए बाद में ही सोचना है और भगत सिंह जी को विश्वास हो गया की अब उनके परिवार वाले पीछे नहीं पड़ेंगे तभी वे वापस लाहौर आए और कीर्ति किसान पार्टी के लोगों से मेलजोल बढ़ाने लगे और उनकी पत्रिका “कीर्ति” के लिए कार्य करने लगे।
वे इसके द्वारा देश के नौजवानों को अपने संदेश देते थे। भगत जी एक बहुत बढ़िया लेखक भी थे, और वे पंजाबियों उदू समाचार पत्रों के लिए भी लिखा करते थे।
सन् 1926 मैं नौजवान भारत सभा में भगत सिंह को सेक्रेटरी बना दिया और इसके बाद सन् 1928 में उन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) को ज्वाइन किया। ये चन्द्रशेखर आजाद ने बनाया था और पूरी पार्टी ने जुट कर 30 अक्टूबर 1928 को भारत में आए। साइमन कमीशन का विरोध किया और उनके साथ लाला लाजपत राय भी थे।
“साइमन वापस जाओ” का नारा लगाते हुए, वे लोग लाहौर रेलवे स्टेशन पर ही खड़े रहे, उनके इस आन्दोलन से उन पर लाठी चार्ज किये गए और लाठी चार्ज होने लगा।
लाला जी बुरी तरह घायल हो गए और उनकी मृत्यु भी हो गयी। उनकी मृत्यु से देश की आजादी के लिए हो रहे आन्दोलन में और भी तेजी आ गयी।
भगत सिंह जी व उनकी पार्टी को बहुत जोर का झटका लगा और उन्होंने ठान लिया की अंग्रेजों को इसका जवाब देना होगा और लाला जी की मृत्यु के जिम्मेदार लोगों को मार डालेंगे, फिर क्या था उन्होंने अंग्रेजों को मारने का प्लान बनाया।
उन्हें पुलिस के ऑफिसर स्कॉट को मारना था मगर गलती से उन्होंने असिस्टेंट पुलिस सौन्डर्स को मार डाला था। अपने आप को बचाने के लिए भगत सिंह तभी लाहौर चले गए।
अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें पकड़ने के लिए चारों तरफ जाल बिछा दिए। भगत सिंह जी ने अपने आप को बचाने के पक्ष में बाल व दाढ़ी कटवा ली थी ताकि उन्हें कोई पहचान न पाए।
वैसे तो ये बाल व दाढ़ी कटवाना सिख समुदाय के खिलाफ जाना था मगर भगत सिंह जी को देश के प्रेम के आगे कुछ और नहीं दिख रहा था। भगत जी के साथ चन्द्रशेखर, राजदेव और सुखदेव ये सब मिल चुके थे और उन्होंने कुछ बड़ा धमाका करने की ठानी थी।
भगत सिंह जी का कहना था कि अंग्रेजों के कान बहरे है और उन्हें ऊँचा सुनाई देता है जिसके लिए बड़ा धमाका आवश्यक है।
भगत सिंह ने असेम्बली में बम कब फेंका था?
8 अप्रैल सन् 1929 को भगत जी ने अपने साथी क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की अस्सेम्बली में बम विस्फोट कर दिया उस बम से केवल आवाज ही होती थी और उसे केवल खाली स्थान पे फेका गया ताकि किसी को हानि न पहुंचे। उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए और पर्चे बाटें और इसके बाद दोनों ने अपने आप को गिरफ्तार करवा लिया। वे चाहते तो भाग सकते थे मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
भगत सिंह जी ने ऐसा करके भारत के लोगों और अंग्रेजों को दिखाया की एक हिन्दुस्तानी क्या क्या कर सकता है, भगत सिंह अपने आपको शहीद बताया करते थे और उनके देश प्रेम को देख कर ये साबित हुआ की वे एक क्रांतिकारी है और उनकी मृत्यु पर वे मरेंगे नहीं बल्कि शहीद होंगे।
भगत सिंह राजगुरु सुखदेव पर मुकदमा चला और जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी, कोर्ट में भी उन तीनों ने इंक़लाब का नारा लगाया।
जेल में भगत सिंह जी ने बहुत सारी यातनाएं सही क्योंकि उस समय भारतीय कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था न तो खाना अच्छा मिलता और न ही पहनने के लिए साफ सुथरे कपड़े ये देख कर भगत जी ने जेल में ही रह कर आन्दोलन शुरू कर दिया। अपनी मांग पूरी करवाने के लिए उन्होंने कई दिनों तक पानी नहीं पिया और खाना भी नहीं खाया।
भगत जी को जेल में बहुत मारा जाता था और उनको गालियाँ भी दी जाती थी ताकि भगत जी हार मान जाये परन्तु उन्होंने अंतिम सांस तक हार नहीं मानी थी।
“Why I am Atheist” सन् 1930 में शहीद भगत सिंह जी ने किताब लिखी.
भगत सिंह की मृत्यु 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन देश के लोगों ने उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन किये थे जिसके चलते ब्रिटिश सरकार को डर लगा की अगर भगत जी को आजाद कर दिया तो वे ब्रिटिश सरकार को जिंदा नहीं छोड़ेंगे इसलिए 23 मार्च 1931 को शाम 7 बज कर 33 मिनट पर जाने से पहले भगत सिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और उनसे पूछा गया की उनकी आखिरी इच्छा क्या है तो भगत सिंह जी ने कहा की मुझे किताब पूरी कर लेने दीजिए।
कहा जाता है कि उन्हें जेल के अधिकारियों ने बताया की उनकी फांसी दी जानी है अभी के अभी तो भगत जी ने कहा की “ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले” फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले – “ठीक है अब चलो”
मरने का डर बिल्कुल उनके मुख पे नहीं था डरने के वजह वे तीनों ख़ुशी से मस्ती में गाना गा रहे थे।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रंग दे;
मेरा रँग दे बसन्ती चोला, माय रँग दे बसन्ती चोला…
भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को फांसी दे दी गयी। ऐसा भी कहा जाता है कि महात्मा गांधी चाहते तो भगत जी और उनके साथियों की फांसी रुक जाती, मगर गांधी जी ने फांसी नहीं रुकवाई।
फांसी के बाद कहीं आन्दोलन न भड़क जाए इस डर की वजह से अंग्रेजों ने पहले मृत शरीर के टुकड़े टुकड़े किये और बोरियों में भरकर फिरोजपुर की तरफ ले गए.
मृत शरीर को घी के बदले मिटटी किरोसिन के तेल से जलाने लगे और गाँव के लोगों ने जलती आग के पास आकर देखा तो अंग्रेज डर के भागने लगे और अंग्रेजों ने आधे जले हुए शरीर को सतलुज नदी में फैंक दिया और भाग गए.
गाँव वालों ने पास आकर शहीद भगत सिंह जी के टुकड़े को इकठ्ठा किया और अंतिम संस्कार किया.
लोगों ने अंग्रेजों के साथ साथ गांधी जी को भी भगत सिंह जी की मृत्यु का दोषी ठहराया और गांधी जी लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में हिस्सा लेने जा रहे थे तो लोगों ने काले झंडों के साथ गांधी जी का स्वागत किया और कई जगह तो गांधी जी पर हमला हुए और सादी वर्दी में उनके साथ चल रही पुलिस ने बचा लिया नहीं तो गाँधी जी को मार दिया जाता.
भगत सिंह जी ने जेल के दिनों में जो खत आदि लिखे थे उससे उनके सोच और विचार का पता चलता है। उनके अनुसार भाषाओं में आई हुई विशेषता जैसे की पंजाबी के लिए गुरुमुखी व शाहमुखी तथा हिंदी अरबी जैसी अलग अलग भाषा की वजह से जाति और धर्म में आई दूरियाँ पर दुःख व्यक्त किया।
अगर कोई हिन्दू भी किसी कमजोर वर्ग पर अत्याचार करता था तो वो भी उन्हें ऐसा लगता था जैसे कोई अंग्रेज हिंदुओं पर अत्याचार करते है।
भगत सिंह जी को कई भाषाएँ आती थी और अंग्रेजी के अलावा बांगला भी आती थी जो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी। उनका विश्वास था की उनकी शहादत से भारतीय जनता और जागरूक हो जायेगी और भगत सिंह जी ने फांसी की खबर सुनने के बाद भी माफीनामा लिखने से मना कर दिया था।
उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए- ज़फ़ा क्या है? हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है? दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें। सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।
इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चंद्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर उन्होंने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी। उन्हें भुलाया भी नहीं भुलाया जा सकता।
भगत सिंह जी के शहीद होने की ख़बर को लाहौर के दैनिक ट्रिब्यून तथा न्यूयॉर्क के एक पत्र डेली वर्कर ने छापा। उसके बाद कई मार्क्सवादी पत्रों में उन पर लेख छापे गए, पर क्योंकि भारत में उन दिनों मार्क्सवादी पत्रों के आने पर रोक लगी हुई थी इसलिए भारतीय बुद्धिजीवियों को इसकी ख़बर नहीं थी। देशभर में उनकी शहादत को याद किया गया.
आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता भगत सिंह को आज़ादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिन्दगी देश के लिये समर्पित कर दी.
नहीं, भगत सिंह जी की शादी नहीं हुई है उनके परिवार कि लाख कोशिशों के बाद भी उन्होंने शादी नहीं की।
भगत सिंह जी सरदार थे वो बचपन से ही दूसरों के लिए जीना पसंद करते थे। भगत सिंह जी अपने देश के लिए कुछ अच्छा करना चाहते थे इसलिए उन्होंने भारत की आजादी के लिए अपना सब कुछ गंवा दिया।
भगत सिंह जी का व्यवहार थोड़ा गुस्सैल था और उनको गुस्सा बहुत जल्दी आता था। भगत सिंह जी हमेशा से ही दूसरों के बारे में सोचते थे गरीबों के साथ हो रहे अन्याय और दुर्व्यवहार उन्हें जरा भी पसंद नहीं था।
भगत सिंह जी को भारत माता से प्रेम था जिसके चलते उन्हें शाहदत प्राप्त हुई, भगत सिंह जी स्वाभिमानी थे।
7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई।
23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बज कर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई।
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को प्रचलित है परन्तु तत्कालीन अनेक साक्ष्य के अनुसार उनका जन्म 19 अक्टूबर 1907 को हुआ था। उनका जन्म गाँव बंगा, जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में है।)
भगत सिंह जी और उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी इसलिए दी गयी थी क्योंकि उन्होंने असेम्बली में बम फेंका था जो कि कानून के खिलाफ है और बहुत से लोगों कि जान जा सकती थी। इस पर भगत सिंह जी चाहते तो वहाँ से भाग जाते लेकिन वो नहीं भागे और 23 मार्च 1931 में उन तीनों देशभक्तों को फांसी दे दी गयी।
भगत सिंह जी और उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी इसलिए दी गयी थी क्योंकि उन्होंने असेम्बली में बम फेंका था जो कि कानून के खिलाफ है और बहुत से लोगों कि जान जा सकती थी।
इस पर भगत सिंह जी चाहते तो वहाँ से भाग जाते लेकिन वो नहीं भागे और 23 मार्च 1931 में उन तीनों देशभक्तों को फांसी दे दी गयी।
उनका जन्म गाँव बंगा, जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में है।)
भगत सिंह जी को बचपन से ही भगत सिंह के नाम से ही बुलाया जाता था और उनके भारत माता के लिए शहीद होने के बाद उनका नाम शहीद भगत सिंह बोला जाता है।
भगत सिंह जी का गाँव “गाँव बंगा, जिला लायलपुर, पंजाब” (अब पाकिस्तान में है।)
भगत सिंह का केस सुप्रसिद्ध वकील आसिफ अली लड़ रहे थे। वहीं अंग्रेजों की तरफ से पैरवी करने वाले ब्राह्मण वकील का नाम था सूर्य नारायण शर्मा। यह वही शर्मा है जो आरएसएस के संस्थापक गोलवलकर के बहुत अच्छे मित्र थे।
शहीद भगत सिंह जी लाहौर षड्यंत्र मामले में अर्थात की सांडर्स हत्याकांड में अपने मकसद को साबित करने और मामले की उचित सुनवाई के लिए जहां मौके का मुआयना करना चाहते थे, वहीं वह गवाहों से जिरह भी करना चाहते थे।
चार नवम्बर 1929 को भगत सिंह द्वारा लाहौर के विशेष मजिस्ट्रेट को लिखे गए पत्र में इन बातों का खुलासा होता है।
भगत सिंह ने अदालत में मुकदमे की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए न्यायाधीशों के सामने पेश नहीं होने का फैसला किया था, लेकिन साथ ही वह चाहते थे कि यदि ब्रिटिश हुकूमत मुकदमे को निष्पक्ष साबित करना चाहते है, तो वह उन्हें उस मौके का मुआयना करने दे, जहां ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सांडर्स को क्रांतिकारियों ने मौत के घाट उतारा था।
भगत सिंह ने लाहौर के विशेष मजिस्ट्रेट को यह पत्र सांडर्स हत्याकांड में अपने और अपने साथियों राजगुरु एवं सुखदेव के खिलाफ धारा 121 ए, 302 और 120बी के तहत दर्ज मामले के संबंध में लिखा था।
शहीद ए आजम के पौत्र यादविंदर सिंह संधु के अनुसार भगत सिंह ने यह पत्र सांडर्स हत्याकांड में अपने मकसद को साबित करने के लिए लिखा था और इसीलिए वह उस सड़क तथा घटनास्थल का मुआयना करना चाहते थे जहां सांडर्स मारा गया था।
भगत सिंह ने अपने इस पत्र में लिखा है कि याचिकाकर्ता (आरोपी) अदालत में अपना प्रतिनिधित्व नहीं करने जा रहे लेकिन यदि सरकार मुकदमे को लेकर निष्पक्ष है तो वह उन्हें कथित घटना के संदर्भ में घटनास्थल (सांडर्स की हत्या वाली जगह) और आसपास के इलाकों का मुआयना कराए।
उन्होंने लिखा है कि सरकार उन्हें मौके के मुआयने के लिए उचित व्यवस्था उपलब्ध कराए और गवाहों से भी जिरह करने का मौका दे।
शहीद ए आजम ने लिखा कि जब तक उन्हें जिरह और मौके के निरीक्षण का अवसर नहीं मिलता, तब तक मामले की सुनवाई स्थगित रखी जाए। उल्लेखनीय है कि लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और शिवराम ने पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट को मारने की योजना बनाई थी।
उन्होंने 17 दिसंबर 1928 को शाम करीब सवा चार बजे अपनी योजना को अंजाम दिया, लेकिन गलत पहचान के चलते स्कॉट की जगह सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन पी. सांडर्स मारा गया, इस दौरान चानन सिंह नाम का एक हेड कांस्टेबल भी मारा गया था, जो क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए दौड़ रहा था।
इस मामले को लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना गया जिसमें राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।
ब्रिटिश हुकूमत ने इन तीनों क्रांतिकारियों को निर्धारित समय से एक रात पहले ही फांसी दे दी। 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में ये तीनों महान क्रांतिकारी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे।
शहीद भगत सिंह जीवनी पढ़ कर अच्छा लगा हो तो कृपया करके दोस्तों आदि में शेयर करना न भूलें और शहीद भगत सिंह जी की जीवनी में कुछ लिखना बाकी रह गया हो तो कृपया टिप्पणी बॉक्स में कमेंट के माध्यम से बताएं।
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Apka yah post kafi achha lga apne bhagat singh ke bare me bahut hi achhi jankari share ki hain iske liye Dhnyabad.
भाई आपने बहुत ही सही लिखा है और गाँधी की जो असलियत आपने लिखी है वो कोई लिखना नहीं चाहता हमें आजादी गाँधी के चरखे से नहीं अपितु फाँसी पर झूलने वाले सहीदों से मिली है । जय हिन्दु
Bhai ji aap nai bhut acha likha hai bs mai itna khana chauga ki
अकसर गाँधी वही लोग बनते है ।
जिनकी भगत सिंह बनने कि औकात नही होती ।
Bilkul sahi bat ....Sir
Asal me bhagat singh banne ke liye educate adhik hona chahiye.....and jb educate ho jayega to sb chij ka pata chalta he.
Sir apne bahut hi acha likha hai . bhagat Singh ke bare me achi jankari mili
Puri congress british ki pittu thi
भाई भगत सिंह जी का परिचय बहुत अच्छा लगा पर भगत सिंह जी के इस परिचय से मुझे बहुत साहस मिला और भारत के नोटों (करेंसी) पर गांधी की नहीं परंतु भगत सिंह जी की फ़ोटो लगनी चाहिए क्योंकि भगत सिंह जी ने भारत के युवको को लड़ना सिखाया अपना हक़ लेना सिखाया अगर आप भी इस बात से सहमत है तो इस बात को नरेंद्र मोदी जी के पास पहुचाने में मदद करे धन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवाद आपने भगत सिंह का परिचय दिया जो सत्य है ऐसे वीर जो देस के लिए प्रति साहस बहादुरी योगदान दिए ऐसा वीर पुत्र को मैं कोटि कोटि प्रणाम करता हूँ ओर उनके किये हुवे योगदानो को भुलाया नही जा सकता । सभी भारतीय की ओ देस प्रेम की भावना होना चाहिए जो हमे जो भगत सीह ने कर दिखाये
जय हिंद जय भारत
Hum to aajadi ke diwane h
Diveney hi achy h
bhaai saheb mujhe bhagat sinh ki story bahut achchi lagi , yah story padhkar mai yah kah sakta hu ki jab tak gandhi jaise log hai bhgat singh ko aese hi kurbaaan hona padega.
शहीद भगत सिंह अमर रहे
वन्दे मातरम