[Biography of Chandra Shekhar Azad in Hindi]
चन्द्रशेखर आजाद एक ऐसा नाम है जिसे सुनने के बाद लोगों के दिलों में देशभक्ति जाग उठती है। चन्द्रशेखर आजाद वही है जिसने भारत की आजादी में अपना सबसे अधिक त्याग दिया था।
चन्द्रशेखर आजाद के बारे में पूरी दुनिया जानती है और ये एक ऐसा नाम है जिन्हे हम भूल कर भी नहीं भुला सकते है। भारत की आजादी में चन्द्रशेखर आजाद का भी बहुत बड़ा योगदान था और उन महान आत्माओं को फांसी दी गयी थी।
भारत के ये ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हे पूरी दुनिया freedom fighters के नाम से जानती है। भारत की आजादी में बहुत से क्रांतिकारियों के रक्त बहे और कुछ लोगों को फांसी की सजा सुनाई गयी।
चन्द्रशेखर आजाद अपने देश के लिए मर मिटे और अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवा चुके हैं। यकीन मानिए वो सभी क्रांतिकारियों के बलिदान और देश के प्रति समर्पण देश भक्ति को कोटी कोटी नमन।
चन्द्रशेखर आजाद अपनी मूछों को ताव देते और हंसते हुए फांसी पर चढ़ गए थे।
चन्द्रशेखर आजाद की जीवनी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी जानने के लिए आप सभी को चन्द्रशेखर आजाद का जीवन परिचय पढ़ना पड़ेगा।
चन्द्रशेखर आजाद के बारे में जानकारी | |
चन्द्रशेखर आजाद का पूरा नाम | शहीद चंद्रशेखर आजाद |
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म स्थान | भाबरा गाँव ( चन्द्रशेखर आजाद नगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) |
चंद्रशेखर आजाद का मृत्यु स्थल | चन्द्रशेखर आजाद पार्क, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश |
चन्द्रशेखर आजाद के आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
चन्द्रशेखर आजाद के प्रमुख संगठन | हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख नेता (1927) |
चन्द्रशेखर आजाद के पिता का नाम | पंडित सीताराम तिवारी |
चन्द्रशेखर आजाद की माता का नाम | जगरानी देवी |
चन्द्रशेखर आजाद भारत के महान स्वतंत्रता क्रांतिकारियों में से एक है। चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के भाबरा गांव में हुआ था।
चन्द्रशेखर आजाद की माता का नाम जगरानी देवी था। चन्द्रशेखर आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा में ही व्यतीत हुआ। उनके सम्मान में अब इस गांव का नाम बदलकर “चंद्रशेखर आजाद नगर” कर दिया गया है।
मूल रूप से उनका परिवार उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव से था, लेकिन पिता सीताराम तिवारी को अकाल के कारण अपने पैतृक गांव को छोड़कर मध्यप्रदेश के भाबरा का रुख करना पड़ा।
यह भील जनजाति बहुल इलाका है और इसी वजह से बालक चंद्रशेखर को भील बालकों के साथ धनुर्विद्या और निशानेबाजी करने का खूब मौका मिला और निशानेबाजी उनका शौक बन गया।
बालक चंद्रशेखर बचपन से ही स्वाभिमानी और देश प्रेमी स्वभाव के थे। पढ़ाई से ज्यादा उनका मन खेल गतिविधियों में लगता था। अंग्रेजों के बुरे बर्ताव को देखते हुए उन्होने बचपन से ही ब्रिटीशियों से नफरत की थी।
चंद्रशेखर आजाद की क्रांतिकारी लड़ाइयाँ (कम शब्दों में)
चंद्रशेखर आजाद का खून तब से खौला जब से सन् 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ और तभी से उन्होने ब्रिटीशियों के शासन को खत्म करने का फैसला लिया।
सन् 1921 में, महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का आवाहन किया, तब से चंद्रशेखर आजाद सक्रिय रूप से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए और जिसके बदले उन्हें कैद भी हुई और फिर उनका क्रांतिकारियों में नाम शामिल हो गया और भारत के लिए उन्होने बहुत से आंदोलन में अपना योगदान दिया।
क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण चन्द्रशेखर पकड़े गए, उन्होंने पंद्रह वर्ष की उम्र में अपनी पहली सजा प्राप्त की और देश भक्ति दिखाई।
मेरा नाम आजाद है। पंडित चंद्रशेखर तिवारी को उनके दोस्त पंडितजी, बलराज और क्विक सिल्वर जैसे कई उपनामों से बुलाया करते थे, लेकिन आजाद उपनाम सबसे खास था और चंद्रशेखर को पसंद भी था। उन्होंने अपने नाम के साथ तिवारी की जगह आजाद लिखना पसंद किया।
चंद्रशेखर आजाद को जाति धर्म, उंच नीच, रंगभेद जैसे बेकार के तत्व बिलकुल भी स्वीकार नहीं थे। आजाद उपनाम कैसे पड़ा, इस संबंध में भी एक रोचक उपकथा विख्यात है। हालांकि इस कथा का पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जिक्र किया है लेकिन यह शुरूआती दौर से ही उनके बारे में सुनी-सुनाई जाती रही है।
सब मजिस्ट्रेट ने उनका नाम पूछा, तो उन्होंने कहा “आजाद” (जिसका अर्थ स्वतंत्र) और उन्होंने चाबुक के प्रत्येक धार के साथ युवा चंद्रशेखर ने “भारत माता की जय” चिल्लाया।
ये बात सन् 1921 में असहयोग आंदोलन अपने उस मुकाम पर था जब बालक चंद्रशेखर एक धरने के दौरान गिरफ्तार कर लिए गए और मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर किया गया। पारसी मजिस्ट्रेट मिस्टर खरेघाट अपनी कठोर सजाओं के लिए जाने जाते थे।
उन्होंने कड़क कर चंद्रशेखर से पूछा:
क्या नाम है तुम्हारा? चंद्रशेखर ने संयत भाव से उत्तर दिया। मेरा नाम आजाद है। मजिस्ट्रेट ने दूसरा सवाल किया। तुम्हारे पिता का क्या नाम है? आजाद का जवाब फिर से कुछ अलग अंदाज में था: उन्होंने कहा मेरे पिता का नाम स्वाधीनता है। एक बालक के उत्तरों से चकित मजिस्ट्रेट ने तीसरा सवाल किया। तुम्हारी माता का नाम क्या है? आजाद का कहना था। “भारत” मेरी माता है और जेलखाना मेरा घर है। बस फिर क्या था, गुस्सा मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर को 15 बेंत लगाने की सजा सुना दी।
बालक चंद्रशेखर को 15 बेंत लगाई गई लेकिन उन्होंने उफ्फ तक न किया। हर बेंत के साथ उन्होंने भारत माता की जय का नारा लगाया। आखिर में सजा भुगतने के एवज में उन्हें “तीन आने” (पैसे) दिए गए जो वे जेलर के मुंह पर फेंक आए। इस घटना के बाद लोगों ने उन्हें आजाद बुलाना शुरू कर दिया।
तब से चंद्रशेखर ने आजाद का खिताब ग्रहण किया और चंद्रशेखर आजाद के नाम से प्रसिद्ध हुए। चंद्रशेखर आजाद ने वचन दिया कि उन्हें ब्रिटिश पुलिस द्वारा कभी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और वह मुक्त व्यक्ति के रूप में मौत को गले लगाएंगे।
जब चंद्रशेखर आजाद को उनके गुस्सैल और आक्रामक व्यवहार को देखते हुए उन्हे असहयोग आंदोलन से निकाल दिया गया तो वे बहुत और भी ज्यादा आक्रमक और क्रांतिकारी आदर्शों के प्रति आकर्षित हुए।
चन्द्रशेखर आजाद का कहना था की भारत की आजादी में किसी भी हालत में वे भारत की आजादी दिला कर रहेंगे।
सबसे पहले चंद्रशेखर आजाद और उनके सहयोगियों ने ब्रिटिश अधिकारियों को निशाना बनाया, जो सामान्य लोगों और स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अत्याचार करने के कार्यों के लिए जाने जाते थे।
चंद्रशेखर आजाद (1926) में काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल हुए, और उन्होंने वायसराय की ट्रेन (1926) में रखा खजाना लूट लिया, और लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला लेने के लिए (1928) में सौन्दर्स को गोली मार दी।
काकोरी कांड और कमांडर इन चीफ
बहुत की कम लोग काकोरी कांड के बारे में सम्पूर्ण जानकारी जानते है। जिसमें देश के महान क्रांतिकारियों रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ाँ, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी ।
अंग्रेजों के खजाने को लूटने में दस सदस्य के एक दल ने अपनी पूरी कोशिश की और इस लूट को अंजाम तक पहुंचाया और अंग्रेजों के खजाने को लूट कर उनके सामने एक बड़े ही विद्रोह की पेश की।
अंग्रेजी खजाने को लूटने के बाद घटना के बाद दल के ज्यादातर सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए। दल खत्म हो गया, आजाद के सामने एक बार फिर से एक संघठन बनाने की समस्या पैदा हो गयी।
आजाद को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा और ब्रिटीशियों की पुलिस उन्हे खोज रही थी और आजाद बचाते छुपते दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में सभी बचे हुए क्रांतिकारियों की एक सभा का आयोजन किया गया।
इस सभा में आजाद को महान क्रांतिकारी भगत सिंह जी से मुलाकात हुई और उनकी आपस में बहुत अच्छी बनी और उस सभा में ये फैसला लिया गया की इस संघठन का नाम “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” (HSRA).
एसोसिएशन में चंद्रशेखर आजाद को कमांडर इन चीफ बनाया गया। संगठन का प्रेरणा वाक्य जो हमेशा के लिए सुनहरे शब्दों में लिखा गया। “हमारी लड़ाई आखिरी फैसला होने तक जारी रहेगी और वह फैसला है जीत या मौत”।
ब्रिटिशों के सिपाही सांडर्स की हत्या और असेम्बली में बम
जब दल को बना लिया गया उसके बाद अंग्रेज सरकार एक बार फिर उनके पीछे पड़ गयी और भगत सिंह जी को फिर मौका मिला। लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने सांडर्स की हत्या का निश्चय किया और चंद्रशेखर आजाद ने उनका साथ दिया।
इसके बाद आयरिश क्रांति से प्रभावित भगत सिंह ने असेम्बली में बम फोड़ने का निश्चय किया और आजाद ने फिर उनका साथ दिया। इन घटनाओं के बाद अंग्रेज सरकार ने इन क्रांतिकारियों को पकड़ने में पूरी ताकत लगा दी और दल एक बार फिर से बिखर गया।
आजाद ने भगत सिंह को छुड़ाने की कोशिश भी की लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। जब दल के लगभग सभी लोग गिरफ्तार हो चुके थे, तब भी आजाद लगातार ब्रिटिश सरकार को चकमा देने मे कामयाब रहे थे। चंद्रशेखर आजाद की इस भूमिका को कोटी कोटी नमन।
27 फरवरी, 1931 को चंद्रशेखर आजाद ने “अल्फ्रेड पार्क अल्लाह” में अपने दो साथियों से मुलाकात की। वह एक मुखबिर थे, उनके द्वारा धोखा दिया गया था, जिसने ब्रिटिश पुलिस को सूचित कर दिया। पुलिस ने पार्क को चारों तरफ से घेर लिया और चंद्रशेखर आजाद को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।
चंद्रशेखर आजाद ने अकेले ही बहादुरी से लड़ाई की और तीन ब्रिटिश पुलिस कर्मियों को मार गिराया। लेकिन खुद को चारों ओर से घिरे हुए पाया और जब उनके पास अग्रेजों से बचने के लिए कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया, तब उन्होने अपनी मातृभूमि को याद किया और अपने स्वाभिमान का आगाज किया।
चंद्रशेखर आजाद अगर अपना समर्पण दे देते तो अंग्रेज उन्हे सजा सुनाते और शायद फांसी भी लगा देते लेकिन चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेजों के साथ मरने से ज्यादा अपने हाथ मरना पसंद आया और अपनी मूँछों को ताव देते हुए अपनी बंदूक को उठाया जिसमें केवल एक गोली बची थी और चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मार दी। इस तरह उन्होंने ज़िंदा नहीं पकड़े जाने की प्रतिज्ञा को पूरा किया।
चंद्रशेखर आजाद ने भारत माता की आजादी में बहुत बड़ा योगदान दिया था जिस एहसान को हम नहीं भुला सकते।
उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरा ये लेख अच्छा लगा होगा और आप चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय को अच्छे से समझ पाए होंगे।
आप चंद्रशेखर आजाद की इस महानता को दुनिया भर में “WhatsApp, Facebook, Twitter आदि के माध्यम से बाँट सकते है।
– Chandra Shekhar Azad in Hindi Story
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