नमस्ते, HindiParichay.com में आज हम दिवाली पर कविता अर्थात “in English, Diwali Poem in Hindi के विषय के ऊपर चर्चा करेंगे, तो लेख को अंत तक पढ़ें और दीपावली पर कविता शायरी, दीपावली के उपलक्ष में शायरी, गरीब की दिवाली कविता, दीपावली काव्य, दिवाली पर निबंध इत्यादि की जानकारी प्राप्त करें।
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आज के समय में दीपावली को लोग बम पटाखों से मनाते हैं, अपने रिश्तेदारों के यहाँ मिठाइयाँ पहुंचाते है उन्हें तोहफे देते है जैसे सूखे मेवे, मिठाइयां, कपड़े आदि। पुराने जमाने में ऐसा नहीं होता था। लोग अपनी दिवाली मनाने के लिए बम पटाखों के इस्तेमाल की जगह आपस के लोगों को दिवाली की कविता भेजते थे। सभी लोगों को दीपावली पर छोटी हिंदी कविताएं पढ़ना और अपने सभी रिश्तेदारों, मित्रों आदि में भेजना बहुत पसंद है।
आज के समय में भी जो घर के बड़े लोग है उन्हें दिवाली पर कविता बोलना और सुनना पसंद है। Hindi Poem on Diwali सभी राज्य में बोली जाती है। छोटे बच्चों के स्कूल आदि में दीपावली के त्यौहार पर हिंदी कविता बोली जाती है। बच्चों के विद्यालय में कविता का सम्मेलन भी होता है। लोगों को दीपावली कविताएं में बहुत ही आनंद आता है। दीपावली पर बच्चों के लिए कविताएं ही नहीं बड़ो के लिए भी दिवाली की सबसे अच्छी कविता लिखी गयी है।
हमारे माता-पिता को अपने जमाने की याद दिलाने वाली दीपावली की कविता आपको यहां से मिलेगी। बड़ो की जरूरत को देखते हुए बड़ो के लिए दिवाली पर कविता 2021 के लिए प्रस्तुत है। दिवाली पर कविताएं निम्नलिखित है।
हिंदी भाषण और निबंध : दीपावली 2023 |
Long Essay on Diwali in Hindi |
Short Diwali Essay In Hindi |
10 Lines On Diwali In Hindi |
Few Lines on Diwali in Hindi |
छात्रों के लिए दीपावली 2023 पर निबंध |
मन से मन का दीप जलाओ जगमग-जगमग दिवाली मनाओ धनियों के घर बंदनवार सजती निर्धन के घर लक्ष्मी न ठहरती मन से मन का दीप जलाओ घृणा-द्वेष को मिल दूर भगाओ घर-घर जगमग दीप जलते नफरत के तम फिर भी न छंटते जगमग-जगमग मनती दिवाली गरीबों की दिखती है चौखट खाली खूब धूम धड़काके पटाखे चटखते आकाश में जा ऊपर राकेट फूटते काहे की कैसी मन पाए दिवाली अंटी हो जिसकी पैसे से खाली गरीब की कैसे मनेगी दीवाली खाने को जब हो कवल रोटी खाली दीप अपनी बोली खुद लगाते गरीबी से हमेशा दूर भाग जाते अमीरों की दहलीज सजाते फिर कैसे मना पाए गरीब दिवाली दीपक भी जा बैठे हैं बहुमंजिलों पर वहीं झिलमिलाती हैं रोशनियां पटाखे पहचानने लगे हैं धनवानों को वही फूटा करती आतिशबाजियां यदि एक निर्धन का भर दे जो पेट सबसे अच्छी मनती उसकी दिवाली हजारों दीप जगमगा जाएंगे जग में भूखे नंगों को यदि रोटी वस्त्र मिलेंगे दुआओं से सारे जहां को महकाएंगे आत्मा को नव आलोक से भर देगें फुटपाथों पर पड़े रोज ही सड़ते हैं सजाते जिंदगी की वलियां रोज है कौन-सा दीप हो जाए गुम न पता दिन होने पर सोच विवश हो जाते दीपावली की शुभकामनाएं..!
दीप जलाओ दीप जलाओ आज दिवाली रे | खुशी-खुशी सब हँसते आओ आज दिवाली रे। मैं तो लूँगा खील-खिलौने तुम भी लेना भाई नाचो गाओ खुशी मनाओ आज दिवाली आई। आज पटाखे खूब चलाओ आज दिवाली रे दीप जलाओ दीप जलाओ आज दिवाली रे। नए-नए मैं कपड़े पहनूँ खाऊँ खूब मिठाई हाथ जोड़कर पूजा कर लूँ आज दिवाली आई।
|| आओ मिलकर दीप जलाएं || आओ मिलकर दीप जलाएं अँधेरा धरा से दूर भगाएं रह न जाय अँधेरा कहीं घर का कोई सूना कोना सदा ऐसा कोई दीप जलाते रहना हर घर -आँगन में रंगोली सजाएं आओ मिलकर दीप जलाएं. हर दिन जीते अपनों के लिए कभी दूसरों के लिए भी जी कर देखें हर दिन अपने लिए रोशनी तलाशें एक दिन दीप सा रोशन होकर देखें दीप सा हरदम उजियारा फैलाएं आओ मिलकर दीप जलाएं. भेदभाव, ऊँच -नीच की दीवार ढहाकर आपस में सब मिलजुल पग बढायें पर सेवा का संकल्प लेकर मन में जहाँ से नफरत की दीवार ढहायें सर्वहित संकल्प का थाल सजाएँ आओ मिलकर दीप जलाएं अँधेरा धरा से दूर भगाएं...!
दीपों का त्योहार दीवाली। खुशियों का त्योहार दीवाली॥ वनवास पूरा कर आये श्रीराम। अयोध्या के मन भाये श्रीराम।। घर-घर सजे , सजे हैं आँगन। जलते पटाखे, फ़ुलझड़ियाँ बम।। लक्ष्मी गणेश का पूजन करें लोग। लड्डुओं का लगता है भोग॥ पहनें नये कपड़े, खिलाते है मिठाई । देखो देखो दीपावली आई॥ गणपति गणना कर रहे, सरस्वती के साथ | लक्ष्मी साधक सब दिखें, सबको धन की आस || ज्ञान उपासक कम मिले, खोया बुद्धि विवेक | सरस्वती को पूजते, मानव कुछ ही एक|| लक्ष्मी वैभव दे रहीं, वाहक बने उलूक | दोनों हाथ बटोरते, नहीं रहे सब चूक || अविनाशी सम्पति मिले, हंसवाहिनी संग | आसानी से जो मिले, छेड़े आगे जंग || लक्ष्मी हंसा पर चलें, ऐसा हो संयोग | सुखमय भारत देश हो, आये ऐसा योग || जन जन में सहयोग हो, देश प्रेम का भाव | हे गणेश कर दो कृपा, पार करो अब नाव || हम सबकी ये प्रार्थना, उपजे ज्ञान प्रकाश | दीपों के त्यौहार में, हो सबमें उल्लास || -अम्बरीष श्रीवास्तव
मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार, जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार, ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार, लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार।। मुझको जो भी मिलना हो, वह तुमको ही मिले दोलत, तमन्ना मेरे दिल की है, सदा मिलती रहे शोहरत, सदा मिलती रहे शोहरत, रोशन नाम तेरा हो कामो का ना तो शाया हो निशा में न अँधेरा हो।। दिवाली आज आयी है, जलाओ प्रेम के दीपक जलाओ प्रेम के दीपक, अँधेरा दूर करना है दिलों में जो अँधेरा है, उसे हम दूर कर देंगे मिटा कर के अंधेरों को, दिलो में प्रेम भर देंगे।। मनाएं हम तरीकें से तो रोशन ये चमन होगा, सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा ये वतन होगा, धरा अपनी, गगन अपना, जो बासी वो भी अपने हैं हकीकत में वे बदलेंगे, दिलों में जो भी सपने हैं।।
दीपावली का त्यौहार प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में आता है और इस त्यौहार का इंतजार पूरे वर्ष किया जाता है। दिवाली के दिन घी के दीपक, तेल के दीपक अन्य प्रकार की खुशबू वाली मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। दिवाली के दिन लक्ष्मी जी और गणेश जी की पूजा भी की जाती है और कहा जाता है कि इस दिन श्री राम जी अपने 14 वर्ष वनवास को काटकर अपने घर अयोध्या नगरी वापस लौटे थे जिसकी खुशी में अयोध्या नगरी के लोगों ने घी के दीपक जलाए थे और यह प्रथा प्रत्येक वर्ष आज भी मनाई जाती है। अयोध्या नगरी में आज भी घी के दीपक जलाए जाते है।
श्री राम जी अयोध्या के राजा थे और उनकी प्रजा हमेशा उनसे बहुत ही खुश थी, उनके न्याय से बहुत खुश थी। श्री राम जी जब अपने चरण कमल वापस अयोध्या में लाये तो अयोध्या वासियों के दिलों में ढेर सारी खुशियां उत्पन्न हुई थी जिसके कारण उन्होंने दिवाली का दिन स्थापित किया और यह प्रथा आज भी विकसित है। आज भी पूरे भारत में घरों में दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है और हिंदू धर्म सनातन धर्म का यह सबसे मुक्त त्योहार माना जाता है।
बात तो यह है कि प्रत्येक वर्ष दिवाली का त्योहार खुशियों का त्योहार है और हमेशा बहुत सारी खुशियां लेकर आता है और इस दिन सारी मार्केट, बाजार, दुकान, गलियां, चौराहे, घरों की सजावट आदि में बहुत ज्यादा दिलचस्पी बढ़ जाती है। लोग अपने कारखानों, कार्यालयों, ऑफिस, कार्यालय, दफ्तरों आदि की साफ-सफाई सजावट करने में बहुत ज्यादा व्यस्त रहते है तो दोस्तों ऐसे समय में छोटे बच्चे जो की विद्यालयों, कॉलेजों आदि में पढ़ते है उनको दिवाली की कविताएं सबसे ज्यादा प्रसिद्ध कविताएं सुनने का और सुनाने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है।
ऊपर दी गई दिवाली कविता की तरह नीचे भी आपको बहुत सारी कविताएं भी पढ़ने को मिलेगी। तो लेख को पूरा पढ़ें और कविता का आनंद ले।
दीपों का त्योहार दिवाली आयी है, खुशियों का संसार दिवाली आई है, घर आंगन सब नया सा लगता है, नया नया परिधान सभी को फबता है, नए नए उपहार दिवाली लायी है, खुशियों का संसार दिवाली लायी है।
आई दिवाली आई दिवाली, खुशियों को संग लाई दिवाली, बच्चे आए बड़े भी आए, सबने सुंदर दीप जलाए, दीपों से जगमगा संसार, एक-दूजे से बढ़ता प्यार।
फिर खुशियों के दीप जलाओ, यह प्रकाश का अभिनंदन है, अंधकार को दूर भगाओ, पहले स्नेह लुटाओ सब पर, फिर खुशियों के दीप जलाओ।
दीपों का त्योहार दीवाली खुशियों का त्योहार दीवाली। वनवास पूरा कर आये श्रीराम अयोध्या के मन भाये श्रीराम। घर-घर सजे , सजे हैं आँगन जलते पटाखे, फ़ुलझड़ियाँ बम। लक्ष्मी गणेश का पूजन करें लोग लड्डुओं का लगता है भोग। पहनें नये कपड़े, खिलाते है मिठाई देखो देखो दीपावली आई।
ये प्रकाश का अभिनन्दन है अंधकार को दूर भगाओ पहले स्नेह लुटाओ सब पर फिर खुशियों के दीप जलाओ शुद्ध करो निज मन मंदिर को क्रोध-अनल लालच-विष छोडो परहित पर हो अर्पित जीवन स्वार्थ मोह बंधन सब तोड़ो जो आँखों पर पड़ा हुआ है पहले वो अज्ञान उठाओ पहले स्नेह लुटाओ सब पर फिर खुशिओं के दीप जलाओ जहाँ रौशनी दे न दिखाई उस पर भी सोचो पल दो पल वहाँ किसी की आँखों में भी है आशा ओं का शीतल जल जो जीवन पथ में भटके हैं उनकी नई राह दिखलाओ पहले स्नेह लुटाओ सब पर फिर खुशियों के दीप जलाओ नवल ज्योति से नव प्रकाश हो नई सोच हो नई कल्पना चहुँ दिशी यश, वैभव, सुख बरसे पूरा हो जाए हर सपना जिसमे सभी संग दीखते हों कुछ ऐसे तस्वीर बनाओ पहले स्नेह लुटाओ सब पर फिर खुशियों के दीप जलाओ।
आओ मिलकर दीप जलाएं अँधेरा धरा से दूर भगाएं रह न जाय अँधेरा कहीं घर का कोई सूना कोना सदा ऐसा कोई दीप जलाते रहना हर घर आँगन में रंगोली सजाएं आओ मिलकर दीप जलाएं। हर दिन जीते अपनों के लिए कभी दूसरों के लिए भी जी कर देखें हर दिन अपने लिए रोशनी तलाशें एक दिन दीप सा रोशन होकर देखें दीप सा हरदम उजियारा फैलाएं आओ मिलकर दीप जलाएं। भेदभाव, ऊँच, नीच की दीवार ढहाकर आपस में सब मिलजुल पग बढायें, पर सेवा का संकल्प लेकर मन में जहाँ से नफरत की दीवार ढहायें, सर्वहित संकल्प का थाल सजाएँ आओ मिलकर दीप जलाएं अँधेरा धरा से दूर भगाएं।
दिवाली त्योहार दीप का, मिलकर दीप जलाएंगे, सजा रंगोली से आंगन को, सबका मन हर्षाएंगे, बम-पटाखे भी फोड़ेंगे, खूब मिठाई खाएंगे, दिवाली त्यौहार मिलन का, घर-घर मिलने जाएंगे।
बरस रही है मां लक्ष्मी की कृपा, हो रही है सुख और समृद्धि की वर्षा। मिट जाएगा हर कोने का अंधियारा, जब दीपो से जगमग होगा जग सारा। भगवान श्री राम अयोध्या पधार रहे है, फूलों की वर्षा हो रही है। सब जन हर्षा रहे है, हो गया है सब दुखों का नाश। सब लोग मंगल गान गा रहे है, फूल, पत्ती, पेड़-पौधे, फसलें लहरा रहे है। सब लोगों के मुख पर मुस्कान है, यही तो दीपावली त्योहार की पहचान है !!
दीप जलाओ दीप जलाओ आज दिवाली रे। खुशी-खुशी सब हँसते आओ आज दिवाली रे। मैं तो लूँगा खील-खिलौने तुम भी लेना भाई नाचो गाओ खुशी मनाओ आज दिवाली आई। आज पटाखे खूब चलाओ आज दिवाली रे। दीप जलाओ दीप जलाओ आज दिवाली रे। नए-नए मैं कपड़े पहनूँ खाऊँ खूब मिठाई हाथ जोड़कर पूजा कर लूँ आज दिवाली आई।
आज दिन दिवाली का आया लेकर खुशियों की टोकरी, महालक्ष्मी सब के घर पधार रही है। आज दिन दिवाली का आया आज की काली रात भी हैरान है, दीपों की रोशनी से पूरा संसार रोशन है। आज दिन दिवाली का आया रिद्धि सिद्धि को भी संग में लाया, भर गया है घर खुशियों से सबका। आज दिन दिवाली का आया संग में खुशियों का मेला लेकर आया, पटाखों की गूंज से पूरा आसमान गूंज उठा। आज दिन दिवाली का आया मिठाइयों की मिठास रिश्तो में घुल रही है, सभी के गिले-शिकवे आज दूर हो रहे है। आज दिन दिवाली का आया हो रहे है सब भाव विभोर, आज दिन खुशियों का आया। आज दिन दिवाली का आया दीपों की सुनहरी कतार सजेगी, आज सभी के घर दीपावली मनेगी।
ना फुलजड़ी फटाके बुलाते मुझे– ना फुलजड़ी फटाके बुलाते मुझे और ना गुलाब जामुन की खुशबू ललचाती मुझे ना फुलजड़ी फटाके बुलाते मुझे और ना गुलाब जामुन की खुशबू ललचाती मुझे ना नए कपड़ों की चाहत खीचें मुझे ना गहनों चमक लुभाए आये मुझे मुझे तो चाहिए कुछ अनमोल घड़ी जब फिर से जुड़ती अपनों से कड़ी दिवाली की रंगत ना भाती मुझे बस माँ की गोद ही याद आती मुझे नहीं वो बचपन की दिवाली सजे बस मुझे मेरे अपनों का साथ मिले बस साथ मिले।
हर घर में हो उजाला, आये ना रात काली, हर घर में मने खुशिया, हर घर में हो दिवाली हर घर में हो सदा ही, माँ लक्ष्मी का डेरा, हर शाम हो सुनहरी, और महके हर सवेरा दिल हो सभी के निर्मल, ना ही द्वेष भाव आये, मन में रहे ना शंका, सुरो में मिठास लाये हर घर में हो उजाला, आये ना रात काली, हर घर में मने खुशिया, हर घर में हो दिवाली।
दिवाली के दीपक जगमगाए आपके आंगन में, सात रंग सजे इस साल आपके आंगन में, आया है यह त्यौहार खुशियां लेके, हर खुशी सजे इस साल आपके आंगन में, रोशनी से हो रोशन हर लम्हा आपका, हर रोशनी सजे इस साल आपके आंगन में।
घर-घर आज दिवाली– साथी, घर-घर आज दिवाली ! फैल गयी दीपों की माला !! मंदिर-मंदिर में उजियाला, किंतु हमारे घर का, देखो, दर काला, दीवारें काली! साथी, घर-घर आज दिवाली! हास उमंग हृदय में भर-भर घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर, किंतु हमारे घर के अंदर डरा हुआ सूनापन खाली! साथी, घर-घर आज दिवाली! आँख हमारी नभ-मंडल पर, वही हमारा नीलम का घर, दीप मालिका मना रही है रात हमारी तारोंवाली! साथी, घर-घर आज दिवाली ! फैल गयी दीपों की माला !!
खेल खीलों और मिठाई देखो देखो दिवाली फिर से आई हम तो फोड़ेंगे बम तुमने फोड़ा तो होगी पिटाई देखो देखो दिवाली फिर से आई दिवाली पर मुममि ने रंगोली बनाई पापा ने लाइट लगाई देखो देखो दिवाली आई दिवाली के रंग में भंग न करना क्योंकि दिवाली है दिल वालों की लाओ मूर्ति लक्ष्मी और गणेश की मिट्टी की देखो देखो दिवाली आई -शानू गुप्ता (संस्थापक, HindiParichay.com)
दुनिए मे चमक चमक के चमके बादल बात करे हम दिवाली की देखो भाई देखो भाई क्या दिवाली रंग लायी खेल खिलौने खील बताशे सबके घर बटवा दिवाली तभी तो दिल वालों की कहलाए दिवाली की रौनक देख देख सब मुसकाएँ
आई दिवाली ख़ुशी मनायेंगे, मिलजुल यह त्यौहार मनायेंगे..। चोदह साल काटा वनवास, राम जी आये भक्तों के पास, खुशियों के दीप जलायेंगे, आई दिवाली ख़ुशी मनायेंगे। दिल से सारे वैर भूला कर, इक-दूजे को गले लगाकर, सब शिकवे दूर भगायेंगे, आई दिवाली ख़ुशी मनायेंगे। चल रहे है बम्ब-पटाखे, शोर मचाते धूम-धड़ाके, संग सब के ख़ुशी मनायेंगे. आई दिवाली ख़ुशी मनायेंगे। छोड़-छाड़ कर दवेष-भाव को, मीत प्रीत की रीत निभाओ, दिवाली के शुभ अवसर पर, मन से मन का दीप जलाओ। क्या है तेरा क्या है मेरा, जीवन चार दिन का फेरा, दूर कर सको तो कर डालो, मन का गहन अँधेरा, निंदा नफरत बुरी आदतों, से छुटकारा पाओ। दिवाली के शुभ अवसर पर, मन से मन का दीप जलाओ खूब मिठाई खाओ छक कर, लड्डू, बर्फी, चमचम, गुझिया। पर पर्यावरण का रखना ध्यान, बम कहीं न फोड़ें कान वायु प्रदुषण, धुएं से बचना, रौशनी से घर द्ववार को भरना। दिवाली के शुभअवसर पर, मन से मन का दीप जलाओ चंदा सूरज से दो दीपक, तन मन से उजियारा कर दें। हर उपवन से फूल तुम्हारे जब तक जियो शान से, हर सुख, हर खुशहाली पाओ, दिवाली के शुभ अवसर पर, मन से मन का दीप जलाओ।
है दीप पर्व आने वाला हमको भी दीप जलाना हैं। मन के अंदर जो बसा हुआ सारा अंधियार मिटाना हैं। हम दीप जला तो लेते हैं बाहर उजियारा कर लेते। मन का मंदिर सूना रहता बस रस्म गुजारा कर लेते। इस बार मगर कुछ नया करें अंतस का दीप जगाना हैं। बाहर का अंधियार मिटा फिर भी ये राह अबूझी हैं। जब तक अंतर्मन दीप बुझा देवत्व राह अनबूझी हैं। सद्ज्ञान राह फैलाकर के सारा मानस चमकाना हैं। है दीप पर्व आने वाला।
साथी, घर-घर आज दिवाली! फैल गयी दीपों की माला मंदिर-मंदिर में उजियाला, किंतु हमारे घर का, देखो, दर काला, दीवारें काली! साथी, घर-घर आज दिवाली। हास उमंग हृदय में भर-भर घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर, किंतु हमारे घर के अंदर डरा हुआ सूनापन खाली! साथी, घर-घर आज दिवाली। आँख हमारी नभ-मंडल पर, वही हमारा नीलम का घर, दीप मालिका मना रही है रात हमारी तारोंवाली! साथी, घर-घर आज दिवाली। - हरिवंशराय बच्चन
फिर खुशियों का दीपक जलाओं ये प्रकाश का अभिनन्दन है अंधकार को दूर भगाओ पहले स्नेह लुटाओ सब पर फिर खुशियों के दीप जलाओ शुद्ध करो निज मन मंदिर को क्रोध-अनल लालच-विष छोडो परहित पर हो अर्पित जीवन स्वार्थ मोह बंधन सब तोड़ो जो आँखों पर पड़ा हुआ है पहले वो अज्ञान उठाओ पहले स्नेह लुटाओ सब पर फिर खुशियों के दीप जलाओ जहाँ रौशनी दे न दिखाई उस पर भी सोचो पल दो पल वहाँ किसी की आँखों में भी है आशाओं का शीतल जल जो जीवन पथ में भटके हैं उनकी नई राह दिखलाओ पहले स्नेह लुटाओ सब पर फिर खुशियों के दीप जलाओ नवल ज्योति से नव प्रकाश हो नई सोच हो नई कल्पना चहुँ दिशी यश, वैभव, सुख बरसे पूरा हो जाए हर सपना जिसमें सभी संग दीखते हों कुछ ऐसे तस्वीर बनाओ पहले स्नेह लुटाओ सब पर फिर खुशियों के दीप जलाओ – अरुण मित्तल ‘अद्भुत’
दीपों का त्योहार दीवाली। खुशियों का त्योहार दीवाली॥ वनवास पूरा कर आये श्रीराम। अयोध्या के मन भाये श्रीराम।। घर-घर सजे , सजे हैं आँगन। जलते पटाखे, फ़ुलझड़ियाँ बम।। लक्ष्मी गणेश का पूजन करें लोग। लड्डुओं का लगता है भोग॥ पहनें नये कपड़े, खिलाते है मिठाई । देखो देखो दीपावली आई॥ दीपावली सदा हम ऐसे मनाएँ कहा उस ने आओ प्रिये दीवाली मनाएं अपने संग होने की खुशियों में समायें आओ प्रिये दीवाली मनाएं हाथ पकड़ दिए के पास लाई जलाने को जो उसने लौ उठाई तभी देखा दूर एक घर अंधेरों में डूबा था बम के धमाके से ये भी तो थरराया था आँगन में उनके करुण क्रन्दन का साया था पड़ोस डूबा हो जब अन्धकार में तो घर हम अपना कैसे सजाएँ तुम ही कहो प्रिये दीवाली हम कैसे मनाएं? कर के हिम्मत उसने एक फुलझडी थमाई लाल बत्ती पे गाड़ी पोछते उस मासूम की पथराई ऑंखें याद आई याचना के बदले मिला तिरस्कार पैसों के बदले दुत्कार घर में जब गर्मी न हो वो पटाखे कैसे जलाये जब है खाली उसके हाथ हम फुल्झडियां कैसे छुडाएं ? तुम ही कहो प्रिये दीवाली हम कैसे मनाएं ? जब खाया नही तो दूध कहांसे आए छाती से चिपकाये बच्चे को सोच रही थी भूखी माँ मिठाइयों की महक से हो रही थी और भूखी माँ खाली हो जब पेट अपनों के कोई तब जेवना कैसे जेवे अब तुम ही कहो प्रिये दिवाली हम कैसे मनाएं? भरी आँखों से देखा उसने फ़िर लिए कुछ दिए ,पटाखे मिठाइयां संग ले मुझको झोपडियों की बस्ती में गई हमारी आहट से ही नयन दीप जल उठे पपडी पड़े होठ मुस्काए सिकुड़ती आंतों को आस बन्धी अंधियारों में डूबा बच्पन आशा की किरण से दमक उठा अमावस की काली रात में जब प्रसन्नता की दामिनी चमक उठी तो अब आओ प्रिये दीवाली हम खुशी से मनाये सुनो न दीवाली हम सदा एसे मनाएं - रचना श्रीवास्तव
दीपों का त्यौहार गणपति गणना कर रहे, सरस्वती के साथ | लक्ष्मी साधक सब दिखें, सब को धन की आस || ज्ञान उपासक कम मिले, खोया बुद्धि विवेक | सरस्वती को पूजते, मानव कुछ ही एक|| लक्ष्मी वैभव दे रहीं, वाहक बने उलूक | दोनों हाथ बटोरते, नहीं रहे सब चूक ||| अविनाशी सम्पति मिले, हंस वाहिनी संग | आसानी से जो मिले, छेड़े आगे जंग || लक्ष्मी हंसा पर चलें, ऐसा हो संयोग | सुखमय भारत देश हो, आये ऐसा योग || जन जन में सहयोग हो, देश प्रेम का भाव | हे गणेश कर दो कृपा, पार करो अब नाव || हम सबकी ये प्रार्थना, उपजे ज्ञान प्रकाश | दीपों के त्यौहार में, हो सबमें उल्लास || - अम्बरीष श्रीवास्तव
आओ मिलकर सब दीप जलाएँ| आओ मिलकर दीप जलाएं अँधेरा धरा से दूर भगाएं रह न जाय अँधेरा कहीं घर का कोई सूना कोना सदा ऐसा कोई दीप जलाते रहना हर घर -आँगन में रंगोली सजाएं आओ मिलकर दीप जलाएं. हर दिन जीते अपनों के लिए कभी दूसरों के लिए भी जी कर देखें हर दिन अपने लिए रोशनी तलाशें एक दिन दीप सा रोशन होकर देखें दीप सा हरदम उजियारा फैलाएं आओ मिलकर दीप जलाएं. भेदभाव, ऊँच -नीच की दीवार ढहाकर आपस में सब मिलजुल पग बढायें पर सेवा का संकल्प लेकर मन में जहाँ से नफरत की दीवार ढहायें सर्वहित संकल्प का थाल सजाएँ आओ मिलकर दीप जलाएं अँधेरा धरा से दूर भगाएं. – कविता रावत
दीपावली मुबारक हो भई कैसा है उजियारा जब कि अमावस काली आई बोले आकाश से पटाखे धरती पे दीवाली आई नासमझी में चाशनी कढ़ाई से लार क्यों टपकाये सजधज के बहुत, मिठाई से भरी वो थाली आई दीये की ज्योति में भाव बदले रंग बदले ज़माने के जीवन था बेरंग कितना, अब गालों पर लाली आई क्यों सब थे नाराज, बैठे गाल फुलाये जब दीपों से दीप जले तो घर में खुशहाली आई बेसुध थी रात कुछ भान ओढ़ने का किसको? अब नथनी नाक में और कानों में बाली आई फैके हम पर निगाह फुरसत न थी घरवाली को “ दीवाली मुबारक हो ! ” कहती हुई साली आई - हरिहर झा
जलायी है जो तुमने हे ज्योति जलाई जो तुमने- है ज्योति अंतस्तल में , जीवन भर उसको जलाए रखूँगा | तन में तिमिर कोई आये न फिर से, ज्योतिगर्मय मन को बनाए रखूँगा | आंधी इसे उडाये नहीं घर कोइ जलाए नहीं सबसे सुरक्षित छिपाए रखूँगा | चाहे झंझावात हो, या झमकती बरसात हो छप्पर अटूट एक छवाए रखूँगा | दिल-दीया टूटे नहीं, प्रेम घी घटे नहीं, स्नेह सिक्त बत्ती बनाए रखूँगा | मैं पूजता नो उसको, पूजे दुनिया जिसको, पर, घर में इष्ट देवी बिठाए |
मनानी है ईश कृपा से इस बार दीपावली, वहीं……… उन्हीं के साथ जिनके कारण यह भव्य त्योहार आरम्भ हुआ … और वह भी उन्हीं के धाम अयोध्या जी में, अपने घर तो हर व्यक्ति मना लेता है दीपावली परन्तु इस बार यह विचित्र इच्छा मन में आई है…… हाँ …छोटी दीवाली तो अपने घर में ही होगी, पर बड़ी रघुनन्दन राम सियावर राम जी के साथ | कितना आनन्द आएगा जब जन्म भूमि में रघुवर जी के साथ मैं छोड़ूँगा पटाखे और फुलझड़ियाँ… जब मैं उनकी आरती करूँगा जब मैं दीए उनके घर में जलाऊंगा उस आनन्द का कैसे वर्णन करूँ जो इस जीवन को सफल बनाएगा | मैं गर्व से कहूँगा कि हाँ मैने इस जीवन का सच्चा आनन्द आज ही प्राप्त किया है अपलक जब मैं रघुवर को जब उन्हीं के भवन में निहारूँगी वह क्षण परमानन्द सुखदायी होंगें | हे रघुनन्दऩ कृपया जल्द ही मुझे वह दिन दिखलाओ इन अतृप्त आँखों को तृप्त कर दो चलो इस बार की दीपावली मेरे साथ मनाओ इच्छा जीने की इसके बाद समाप्त हो जाएगी क्योंकि सबसे प्रबल इच्छा जो मेरी तब पूरी हो जाएगी|
हर घर दीप जग मगाए तो दिवाली आयी हैं, लक्ष्मी माता जब घर पर आये तो दिवाली आयी हैं! दो पल के ही शोर से क्या हमें ख़ुशी मिलेंगी, दिल के दिए जो मिल जाये तो दिवाली आयी हैं ! घर की साफ सफ़ाई से घर चमकाएँ तो दिवाली आयी हैं, पकवान – मिठाई सब मिल कर खाएं तो दिवाली आयी हैं! फटाकों से रोशनी तो होंगी लेकिन धुँआ भी होंगा, दिए नफ़रत के बुज जाएँ तो दिवाली आयी हैं! इस दिवाली सबके लिए यही सन्देश हैं की इस दिवाली हम लक्ष्मी का स्वागत दियों के करे, फटाकों के शोर और धुएं से नहीं इस बार दिवाली प्रदुषण मुक्त मनायेंगे!
जब मन में हो मौज बहारों की चमकाएं चमक सितारों की, जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों तन्हाई में भी मेले हों, आनंद की आभा होती है उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है, जब प्रेम के दीपक जलते हों सपने जब सच में बदलते हों, मन में हो मधुरता भावों की जब लहके फ़सलें चावों की, उत्साह की आभा होती है उस रोज दिवाली होती है, जब प्रेम से मीत बुलाते हों दुश्मन भी गले लगाते हों, जब कहीं किसी से वैर न हो सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो, अपनत्व की आभा होती है उस रोज़ दिवाली होती है, जब तन-मन-जीवन सज जायें सद्-भाव के बाजे बज जायें, महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की मुस्काएं चंदनिया सुधियों की, तृप्ति की आभा होती है उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है|
माँ तू नाराज न होना इस दिवाली मैं नहीं आ पाऊँगा, तेरी मिठाई मैं नहीं खा पाऊँगा, दिवाली है तुझे खुश दिखना होगा, शुभ लाभ तुझे खुद लिखना होगा | तू जानती है यह पूरे देश का त्योहार है और यह भी मां कि तेरा बेटा पत्रकार है| मैं जानता हूँ, पड़ोसी के बच्चे पटाखे जलाते होंगे, तोरन से अपना घर सजाते होंगे, तु मुझे बेतहाशा याद करती होगी, मेरे आने की फरियाद करती होगी | मैं जहाँ रहूँ मेरे साथ तेरा प्यार है, तू जानती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है| भोली माँ मैं जानता हूँ, तुझे मिठाईयों में फर्क नहीं आता है, मोलभाव करने का तर्क नहीं आता है, बाजार भी तुम्हें लेकर कौन जाता होगा, पूजा में दरवाजा तकने कौन आता होगा| तेरी सीख से हर घर मेरा परिवार है तू समझती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है| मैं समझता हूँ, माँ बुआ दीदी के घर प्रसाद कौन छोड़ेगा, अब कठोर नारियल घर में कौन तोड़ेगा, तू गर्व कर माँ…….. कि लोगों की दिवाली अपनी अबकी होगी, तेरे बेटे के कलम की दिवाली सबकी होगी | लोगों की खुशी में खुशी मेरा व्यवहार है तू जानती है न माँ तेरा बेटा पत्रकार है…
प्रिय पाठकों, मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको दिवाली पर कविता मिल गयी है और मैं उम्मीद करूंगा की आप इन कविता को शेयर करेंगे। Diwali Poem in Hindi में बहुत सारी कविताएं। इन कविताओं को शेयर करना न भूलिए।
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