Shani Jayanti 2020: 22 मई 2020 को न्याय के देवता शनि देव का जन्मदिन है।
2020 ज्येष्ठ अमावस्या को मनाया जाता है। शनि महाराज के जन्मदिन के शुभ अवसर शनिभक्त उनका जन्मदिन उनकी पूजा और आराधना से बनाते है।
इस बार 2020 में शनिदेव के जन्मोत्सव की अर्द्धरात्रि के बाद सूर्य ग्रहण। ज्योतिषियों के अनुसार शनि अगर वक्री होकर कन्या राशि में होने से अत्यंत शक्तिशाली रहेंगे। शनि जयंती पर काल दंड योग भी होगा। इस तरह के महासंयोगों की स्थिति 100 वर्षों बाद निर्मित हो रही है।
शनि देव की महिमा अपरंपार है। विद्वानों की मान्यताओं के अनुसार शनि दिवस पर शनि देव को प्रसन्न करने हेतु अनेक मंत्र व जापों का गुणगान किया जाता है। शनि देव हिन्दू धर्म के ज्योतिष में नौ मुख्य ग्रहों में से एक हैं। शनि देव अन्य ग्रहों की तुलना मे धीमे चलते हैं इसलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि के जन्म के विषय में काफी कुछ बताया गया है और ज्योतिष में शनि के प्रभाव का साफ संकेत मिलता है।
शनि ग्रह वायु तत्व और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। शास्त्रों के अनुसार शनि जयंती पर उनकी पूजा-आराधना और अनुष्ठान करने से शनिदेव विशिष्ट फल प्रदान करते हैं।
श्री शनि देव की आरती | शनि देव के 108 नाम |
शनि देव के जन्मदिन के शुभ अवसर पर शनिभक्त अपने शनिदेव के लिए पूजा रखते है उनके लिए भंडारा रखते है। शनिदेव की कहानी का थोड़ा सा भाग में आप सभी के सामने रखना चाहते हूँ।
शनिदेव की प्राचीन कथा निम्नलिखित है।
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प्राचीन कथाओं के अनुसार शनि देव को न्यायाधीश माना जाता है और शनि देव के जन्म के संदर्भ में एक पौराणिक कथा जिसे बहुत ज्यादा मान्यता प्राप्त है।
शनि देव के पिता सूर्य देव और उनकी माता छाया हैं। सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ, कुछ समय पश्चात उन्हें तीन संतानों के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई।
इस प्रकार कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया परंतु संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं उनके लिए सूर्य का तेज सहन कर पाना मुश्किल होता जा रहा था, इसी वजह से संज्ञा ने अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर वहां से चली चली गईं और कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ।
शनि देव और उनकी माता में बहुत प्रेम था सूर्य महाराज से ज्यादा वो अपनी माता से प्यार करते है।
Shani Jayanti Puja 2020 Date | |
शनि जयंती कब है 2020 में | 22 मई 2020 |
शनि जयंती कब की है | शुक्रवार 22 मई 2020 |
शनि जयंती सोमवती अमावस्या तिथि आरंभ | 21/05/2020 21:36 से |
शनि जयंती पूजा विधि समाप्त | 22/05/2020 23:08 तक |
शनि जयंती के शुभ अवसर पर शनिदेव के नियमित रूप से विधि-विधान से पूजा पाठ तथा व्रत किया जाता है। कहा जाता है कि शनि जयंती के दिन किया गया दान पुण्य एवं पूजा पाठ शनि संबंधित सभी कष्टों से दूर कर देने में सहायक होता है।
शनिदेव की जयंती के शुभ अवसर पर लोगों को पूजा करने के लिए शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि से निवृत्त होकर नवग्रहों को
नमस्कार करते हुए शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित करें और उसे सरसों या तिल के तेल से स्नान कराएं तथा षोडशोपचार पूजन करें साथ ही शनि मंत्र का उच्चारण करें :- ॐ शनैश्चराय नम:।। इसके बाद पूजन सामग्री सहित शनिदेव से संबंधित वस्तुओं का दान करें।
इस प्रकार पूजन के बाद दिन भर निराहार रहें व मंत्र का जाप करें। शनि की कृपा एवं शांति प्राप्ति हेतु तिल, उड़द, काली मिर्च, मूंगफली का तेल, आचार, लौंग, तेजपत्ता तथा काले नमक का उपयोग करना चाहिए, शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए।
शनि देव के लिए दान में दी जाने वाली वस्तुओं में काले कपड़े, जामुन, काली उड़द, काले जूते, तिल, लोहा, तेल, आदि वस्तुओं को शनि के निमित्त दान में दे सकते हैं।
शनि दिवस के पावन अवसर पर शनि मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। भारत में स्थित प्रमुख शनि मंदिरों में भक्त शनि देव से संबंधित पूजा पाठ करते हैं तथा शनि पीड़ा से मुक्ति की प्रार्थना आराधना करते हैं।
शनि देव का रंग काला था और उन्हे श्री कृष्ण जैसा बताया जाता है इसलिए शनि देव को काला रंग अधिक प्रिय है। शनि देव काले वस्त्रों में सुशोभित हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन हुआ है। जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और बड़े केशो वाले थे, यह न्याय के देवता हैं, योगी, तपस्या में लीन और हमेशा दूसरों की सहायता करने वाले होते हैं। शनि ग्रह को न्याय का देवता कहा जाता है यह जीवों को सभी कर्मों का फल प्रदान करते हैं।
पंचग्रही, काल दंड योग और वट सावित्री अमावस्या, शनि जन्मोत्सव की अर्द्धरात्रि बाद से सूर्यग्रहण।
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या को सूर्यास्त के समय शिंगणापुर नगर में शनिदेव की उत्पत्ति हुई थी। पंडितों के अनुसार शनि जयंती पर उनकी साधना-आराधना और अनुष्ठान करने से शनिदेव विशिष्ट फल प्रदान करते है।
शनि देव मंत्र जाप
ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नमः॥ अथवा ॐ शं शनैश्चराय नमः।
शनि देव की जयंती के दिन शनि मंत्र का जाप करना चाहिए। उसके उपरांत शनि आरती करके उनको साष्टांग नमन करना चाहिए। शनि देव की पूजा करने के बाद अपने सामर्थ्यानुसार दान देना चाहिए।
इस दिन पूजा-पाठ करके काला कपड़ा, काली उड़द दाल, छाता, जूता, लोहे की वस्तु का दान तथा गरीब व निशक्त लोगों को मनोनुकूल भोजन कराना चाहिए, ऐसा करने से शनि देव प्रसन्न होते है तथा आपके सभी कष्टों को दूर कर देते हैं।
शनिदेव को न्याय के देवता ज्योतिषाचार्य पं. धर्मेंद्र शास्त्री के अनुसार शनिदेव नीतिगत न्याय करते हैं। शनि साढ़ेसाती, अढैया के रूप में प्रत्येक मनुष्य को फल प्रदान करते हैं।
कहा गया है- “शनि वक्री जनैः पीड़ा” अर्थात् “शनि के वक्री होने से जनता को पीड़ा होती है।” इसलिए शनि की दशा से पीड़ित लोग इस दिन उनकी उपासना और पूजा करें तो शांति मिलेगी।
सूर्य, चंद्र, गुरु, शुक्र और केतु के वृषभ राशि में होने से शनिदेव के मित्र शुक्र की राशि में पंचग्रही योग निर्मित हो रहा है। शनि जयंती पर सूर्य ग्रहण भी होगा। हालांकि यह केवल पूर्वी भारत में दिखाई देगा।
सूर्य ग्रहण 20 मई की रात 2 बज कर 36 मिनट से 21 मई को सुबह 8 बज कर 19 मिनट तक कृतिका नक्षत्र और वृषभ राशि में लगेगा।
ज्योतिष में वार और नक्षत्र के संयोग से आनंद आदि 28 प्रकार के योग बनते हैं। शनि जयंती को रविवार और भरणी नक्षत्र के संयोग से काल दंड नामक योग बनेगा।
ज्योतिषियों के अनुसार काल दंड के अधिष्ठाता शनिदेव के छोटे भाई मृत्यु के देव यमराज होते हैं। इसके स्वामी शनि के मित्र शुक्र होते हैं। कालदंड शनिदेव के भी आज्ञाकारी सेवक हैं जो शनि भक्तों के रोग, शत्रुओं आदि बाधाओं का विनाश कर भ्रष्टाचारियों, अपराधियों को दंडित करते हैं।
शनि देव को प्रसन्न करने हेतु शनि भक्तजनों द्वारा शनि महाराज की प्रिय वस्तु का दान या सेवन करना चाहिए। शनि के प्रिय वस्तु है- लोहा, काला तिल, उड़द, मूंगफली का तेल, काली मिर्च, अचार, लौंग, काले नमक आदि पसंद है।
प्रिय भक्तों, मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको शनि जयंती की सारी जानकारी मिल गयी होगी और शनि महाराज की कृपा जरूर आप पर बरसेगी।
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